Thursday, January 28, 2016

28/01/2016 बापूंचे पितृवचन

हरि ॐ दि: 28/01/2016
बापूंचे पितृवचन

श्री शब्द ध्यान योग..ये और श्रीश्वासम् पुस्तिका कम-से-कम तीन बार पढी है, या दो बार, या एक भी बार पढी है, ऐसे कितने लोग है? बहुत कम! पर ये बार बार पढनी चाहिये। इसका अर्थ, विनियोग जो लिखा गया है; वह और आसान हो सकता है। इन चार स्तंभो में सारे उपनिषद का सार समाया गया है! अगर हमें पढना नहीं आता, तो किसी और से हम पढकर सुन सकते है।

मैने कहा था, कि "ये वैदिक मंत्र शुरू होते है, तो हम इस प्रतिमा को देख सकते है। उसके बाद मैने कहा कि हम इस चक्र के बीज को बोल सकते है"। तो ये 'सिखिये' इस हर एक में बहुत बडी ताकत होती है। जब तक हमारा ये कार्यक्रम चलते रहता है, तब तक!  ये उस माँ ने बनाया है, उसे और अच्छा बनाना है!
साई चरित्र में अध्याय 28 में बाबा ने कहा है कि, "ऊतुन चालला आहे खजिना"
उसका खजाना बहुत है। उसमें से हम कितना ले सकते है, उतना हमें लेना है। तो ये पुस्तिका हमें लेनी है! कम से कम 20 मिनिट लगते है।
हम 'मुलाधार चक्र' के 'लं' बीज देख रहे है।
यह लं बीज वेदेन्द्र और वसुंधरा का होता है।
एक बात सुनिये, 'मनुष्य के रुप में इस वसुंधरा मे जन्म लेना बहुत rare (दुर्लभ, दुर्मिळ) है! और उसके बाद इस भारत वर्ष में जन्म लेना, दुर्मिळ (दुर्लभ)है! और उसके बाद हमारा जन्म भारतीय धर्म में होता है, तो हमें ये जान लेना है, कि 'हम बहुत खुशनसीब है'
यह वसुंधरा खुद की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करती है। मंदिर में जाने के बाद हम भगवान की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करते है! जो भगवान कि मुर्ती हमारे सामने है, उसका 'अंश' हममें जरुर आयेगा ही!

इश्वर का अंश हमारे प्राणमय देह में होता है। यह जानकर जब हम खुद की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करते है, तो वह हमारे भगवान की करते है।

यह वसुंधरा सुर्य भगवान की भी प्रदक्षिणा करती है।

वेदमंत्र की ताकत पाने के लिए, हम उनका मतलब नहीं जानते, तो भी चलता है! वैसे ही ये वैदिक मंत्र कार्य करते रहते है।

यह वसुंधरा खुद कि प्रदक्षिणा करते हुए, सुर्य की भी परिक्रमा करती रहती है। इसलिए सुर्य 'पृथ्वी' की 'आत्मा' है।

अगर हमें किसी ने पुछा, "हमारी आत्मा कहाँ है"? तो क्या कहोगे?
'आत्मा' नाम की चीज, 'जिवात्मा' के नाम से पुरे देह में व्याप्त रहती है। हमारी सारे इंद्रियों में यह आत्मा होती है। आत्मा; जिवात्मा के रुप में अंदर होती है। अपनी 'आत्मा' (भुत-प्रेत वाली आत्मा नहीं)
वसुंधरा की आत्मा से मिलती रहती है। So, we are connected with this Vasundhara! (यानी हम लोग इस वसुंधरा से जुडे हुये है)
इसी तरह हमारी जिवात्मा, अपने परमात्मा की आत्मा से जुडी होती है।
हमारे मन में ये भय सबसे ज्यादा होता है! Fear of Seperation.. (अलग होने का भय)
अपनी माँ से परावृत्त होने का भय!
एक 'माँ' की गर्भ से बाहर निकले हुए बच्चे को भय होता है! उसे ही कहते है, 'Fear of Seperation'
साई चरित्र और बाकी ग्रंथो में लिखा है,
"आहार, निद्रा, भय, मैथुन
सर्वांकरिता समसमान"

माँ की पेट में हम जब थे; तो हम माँ को देख नहीं सकते! उसका स्पर्श, नहीं समझ सकते! पर पेट से बाहर आने के बाद माँ का स्पर्श मिलने लगा। माँ की आवाज सुनने को मिले, मैं यह सब माँ की गर्भाशय से बाहर नहीं आता; तो मैं यह सब Express (व्यक्त) नहीं कर सकता था।

कोई कितना भी पापी और नास्तिक हो, हमेशा भगवान से पुरी तरह से जुडे होते है।No one can that their connection with the God! (ऐसा कोई भी नहीं, जो भगवान से जुडा हुआ नहीं)
"परमेश्वराशी तुमचे जे नाते आहे, जी तुमची नाळ जोडली गेली आहे; ती कोणी सैतान ही येऊन तोडू शकणार नाही" पहले यह विचार मन में रखो, कुछ भी होने पर भी हमारा भगवान से नाता कभी टुट नहीं सकता।
मरने के बाद भी, भुत का भी नाता उस 'शिव' से जुडा होता ही है। जो 'दुर्गादास' है, उसका भुत होने का कोई chance ही नहीं होता! जो 'दुर्गादास' नहीं है, वो अगर भुत बन कर आपके पास आया; फिर भी वो हमारा कुछ नहीं बिगाड सकता।

हम कितना भी चाहें, 'उस भगवान को छोडें' फिर भी वो भगवान हमारा connection (नाता) तोडनें नहीं देगा! ये connection ('नाता') होता है, तो हमें उसका ज्यादा से ज्यादा फायदा लेना चाहिए! 'बडी माँ' खुद ये चाहती है।

उपनिषद में भी 'विगत' भी 'सुगत' होता है! और उनकी तिर्थ-यात्रा श्री गुरुक्षेत्रम् से शुरू होती है! और ये श्रीगुरुक्षेत्रम् ही वसुंधरा का 'हृदय' होता है। जब भी हम श्रीगुरुक्षेत्रम् में आते है, और ये गुरुमंत्र सुनते है; तो हमारे शरीर में यह "लं लं लं" का जाप चलता रहता है।
और इस तरह हमारे शरीर में वो कार्य करने लगता है।
तो ये हमारे शरीर में कैसे कार्य करता है? हर एक 'ध्वनी' को अंदर जाने के लिए एक medium (माध्यम) की जरुरत होती है! और ये शब्द हमेशा अमर होते है! इन शब्दों से ही सारा संसार बना है। ॐ  से ही सारी दुनिया बनी है! और उसकी Energy (उर्जा) से ही सारे कंपन बनते है! और हम में से जाने की और हममें स्विकार ने की क्षमता है।
श्रध्दावान मन में भी जाप करे, तो भी ये हमारे लिए फायदेमंद है!
वसिष्ठ ऋषी नें कहा है, की "सामान्य मनुष्य का मन, एक जगह खडे होकर कम से कम उस मनुष्य की याददाश्त तक जाता है।
और जब कोई मनुष्य, 'मंत्र' कहता होता है, तब तो बहुत दुर तक जाता है। जब हम यहाँ होते है, और हमारी माँ या बहन को कुछ होता है, तो हमें कुछ महसुस होने लगता है।
अगर कोई बाईक पर जा रहा होगा, तो बाईक चलाने वाले ने हेल्मेट पहनना जरुरी है! और उसके पिछे बैठने वाले को भी हेल्मेट पहनना उतना ही जरुरी है! कोई हमें डरपोक कहें तो भी चलेगा!

यह 'लं' बीज, हमारे पैर धरती पर स्थिर रहने के लिए मदद करते है।

हम बडे बडे बिझनेस करने की सोचते है, हम वास्तव से दुर जाते है! उस वक्त हमारे पैरों को जमीन पर रहने को मदद करते है।

अगले वक्त 'ॐ लं' बोलते हुए यह महसुस करें, "की हमारा भय चला जा रहा है"

शब्दांकन
मिलिंदसिंह फणसे
���� हम सब अंबज्ञ है। ����

Thursday, January 21, 2016

Pitruvachan as of 21/01/2016

हरि ॐ दि.21/01/2016
बापूंचे पितृवचन

पिछली बार देखा...recreation क्या होगा! ऐसा मनोरंजन, जिससे ताकत और भी बढें..
आज से हम.. लोग क्या करने जा रहे है? जहाँ विविध बीजाक्षर देखते है.. उन्हीं का अवगाहन करने जा रहे है। उन्हे हमारे जीवन में लाकर हमारे चक्र में लाते है...
ये, पहला 'मुलाधार चक्र' है, उसमें 'लं' यह बीजाक्षर है। जिसे कुछ नहीं आता, वह सिर्फ ॐ लं बोलेगा, तो भी चलेगा। लं, ये बीज है।

ॐ लं इंद्रय: नम:
ॐ लं वसुंधरायै नम:
'लं' यह इंद्र का भी बीज है और पृथ्वी का भी बीज है!
इंद्र यानी वेदेन्द्र... उसी को हम लोग मानते है।
यह लं बीज हमें क्या देता है...ये मुलाधार, हर एक के चक्र में वो 'उच्चार' रहता ही है...सातों चक्रों में...हर एक के अपने अपने चक्र में 'उच्चार' रहते है! लेकिन उसकी freq. (पुन:पुनरावृत्ती) के लिए ईश्वर हमें, चक्र में जो उर्जा है, वो और बढेगी.. हमें उससे फायदा होगा! ये क्या होगा, वह सब उसपर निर्भर करता है!
यह उच्चारण महाप्राण हनुमंत जी करते है।हम कितने भी पुण्यवान, पापी क्यूं ना हो; इन बीजमंत्र का गुंजन 'महाप्राण हनुमंत करते है, और यह गुंजन ही हमारी सही ताकत होती है।
हमने सुना है, जहाँ भी रामनाम की कथा चल रही हो, वहाँ हनुमान जी होते ही है। हमारे देह में हनुमान जी 'महाप्राण' के रुप में 'गुंजन' कर रहे है; तो हमारे देह में रामकथा चल ही रही है! और ये रामकथा कहाँ चलती रहती है? तो इस मुलाधार चक्र में ही चलती रहती है! निरंतर...अंतिम साँस तक यह चलती ही रहती है। इसका फायदा हमें क्यूँ नहीं मिलता? घर में पुजा चल रही है, लेकिन अगर पुजा में नहीं बैठे... प्रसाद नहीं खाया, तो प्रॉब्लेम हमारा है। वैसे ही 'रामकथा चल रही है, निरंतर! सामान्य इन्सान के सात चक्रों की स्थिती है... उनकी बात बतायी गयी! इसलिए 'हम' जो बाधाएँ डालते है, वो दुर करने के लिए हमें श्री शब्द ध्यान योग मिला है। रामकथा चल रही है... हमें सिर्फ उसे हासिल करना है।ये कब होता है! यह पृथ्वी.. हमारी पाठशाला है.. हमारा घर भर्गलोक में है। परमात्मा के पास से हमें यहाँ पढने के लिए भेजा है। ये रामकथा हमारे मुलाधार चक्र में चलती रहती है; तो इसका लाभ उठाना चाहिए। पहला चक्र पृथ्वी से जुडा है। आहार-विहार-आचार-विचार! आचार याने आचरण... आहार याने सिर्फ खाना नहीं! कान से जो सुनते है, जो देखते है, जो चिंतन करते है  जो गंध लेते है; वो भी आहार है। मनुष्य को 'पृथ्वी कन्या या पुत्र कहा गया है। इस चक्र में ये 'लं' बीज है! इस 'लं' बीज का उच्चारण होता रहता है। ये उच्चारण जो हो रहा है; महाप्राण से उसकी ताकत... वो और कैसे बढें, ये कोशिश हमें करनी चाहिए।
आहार हमारा अशुध्द होता है। जो नहीं खाना, वो ही खाते है! जो विचार नहीं करने चाहिये, सभी करते है।
विहार... जहाँ नहीं जाना चाहिए, वहीं जाते है!
इससे हमारे मुलाधार चक्र में जो भी अवरोध है, उन अवरोध को दुर करना; वो इंद्रशक्ती का काम है। घनप्राण से शक्ती प्राप्त होती है।
यह जो 'लं' बीज है; इसमें दो इंद्रशक्ती है। इंद्रशक्ती याने "अंकुर को जमीन से बाहर लाने की जो शक्ती है, वह इंद्रशक्ती है! जो अभेद्य है, उसका 'भेदन' करने की शक्ती याने इंद्रशक्ती! और यहीं हमें चाहिए!
जब यहाँ मंत्र चल रहा है, तभी 'ॐ लं' बोलते है।
घर पर पहले 'ॐ लं' 5 बार बोल कर फिर स्वस्तिविद्या बोलोगे, तो और भी अच्छा!

हमारे पास जो ताकत है इस रामकथा की... उससे हम जो हासिल करते है...we go on spending... (हम खर्च कर रहे है)
कुछ दिन पहले सुना कि; अमरिका, प्रॉब्लेम में है, financial (आर्थिक) प्रॉब्लेम से बाहर नहीं आ सकते...
हमारे पास क्रेडिट कार्ड होता है... वैसे ही मुलाधार चक्र के लिए...हमारे जन्म के साथ साथ क्रेडिट कार्ड लेकर भेजा जाता है! वो हमारे कर्म के कारण नहीं, तो "माँ जगदंबा की कृपा के कारण मिलता है।
हम उसे भी खतम कर देंगे, तो हमारे पास क्या रहेगा?
यह क्यूँ होता है?
एक और कार्ड होता है, इस मुलाधार में...
वह हम लोग डलवाते है...ये दुसरे लोग लाकर डालते है, उसका नाम Victim card..(पिडित, फँसाना)
हम हमेशा सोचते है.. I am Victim...
मुझ पर अन्याय हो रहा है। हमने दुसरों पर कितना अन्याय किया है, वो नहीं देखते!
बाकी लोग गलत बर्ताव तर रहे है... मैं ही सही!;
बाकी के सारे गलत, सिर्फ आप ही सही; ऐसा नहीं हो सकता!

त्रिविक्रम ने माँ से लेकर जो क्रेडिट कार्ड हमें दिया है, उसके साथ हम खुद का Victim card डालते है।
छोटी सी बात हुई तो भी "ये सही नहीं हुआ मेरे साथ" तुम कितने सही हो, वो सोचो पहले! लेकिन हमें जानना चाहिये...लोग हमें फँसाते रहते है; कि वो बात हममें रह जाती है! हम कितने पापी है, वो सोचते है। दुसरे लोग हमारे पास आकर रोते है! ऐसे लोग dangerous (खतरनाक) है। आकर रोयेंगे, तो हमारा दिल पिघल जाता है। अगर सच में दुखी है, तो उनकी सहायता करो! लोगों के पास बार बार जाकर बोलने की क्या जरुरत है! लोग कुछ नहीं करनेवाले! भगवान करनेवाले है।
लोग जब आप के पास आ कर रोते है, तो समझ लेना, वो गलत है।
आपके बच्चे रोयें, तो ठीक है! लेकिन कोई भी आता है, तो गलत है। मुझे क्यूँ बता रहे हो... कानों से सुन लो! "चोराच्या उलट्या बोंबा" वो ही चोर होता है।

हम लोग judgement (न्याय) करने बैठ जाते है... हम ये गलती करते है। हम न्याय-अन्याय करने लगते है! हम भगवान की जगह लेने की कोशिश करते है। मतलब "हम महिषासुर के सैनिक बनते है"
आकर कोई रोयें, तो सुन लो! आप जानते नहीं, उसकी दुसरी बाजू (तरफ) क्या है! आप सर्वज्ञ नहीं है; तो judge (जज) बनकर बैठना नहीं!
और ये कार्ड, Victim का! आपके शरीर में बैठ जायेगा। अगर उसकी बात मानेंगे, तो ये कार्ड और ही बढता जायेगा। और ये 'व्हिक्टिम कार्ड, क्रेडिट कार्ड को मिटा देता है'
इस क्रेडिट कार्ड का नाम ही 'इंद्रशक्ती' है और व्हिक्टिम कार्ड का नाम है 'शंकासुर'
शंका याने गलत विचार... ये सब शंकासुर, ये इंद्रशक्ती का हनन करते है। हम पर कितना अन्याय हुआ है, यह सोचना बंद करना चाहिए!
जो हमारे पास आकर रोता है, बहुत बार; जो पहले आकर रोता है, वो चोर है।
ये नहीं होना चाहिए! हम अध्यात्म मार्ग पर है, इसका मतलब ये नहीं, कि कोई भी आये और हमें लुटकर जायें! हम लोग स्मार्ट बनेंगे, मुर्ख नहीं बनना है।
और ये स्मार्ट बनने के लिये, 'मुलाधार चक्र' है। यह हमारा प्रापंचिक चक्र है। ये एक ही चक्र ऐसा है, जो हमें प्रपंच करने में सहायता करता है। इस इंद्रशक्ती के कारण ही हमारा प्रपंच सुख से चलता है। इस चक्र को support (आधार) चाहिए, बाकी चक्रों का!  लेकिन पहले ये चक्र चाहिए।
देह की उपेक्षा मत करना, ये साईचरित्र में बार बार बताया गया है।
हमारे पास ये दो कार्ड है! हमें किसे बल देना चाहिए!
वेदेन्द्र ने शंकासुर को अपने दाहिने पैर के नाखुनों से मार डाला था। हमारे पास जब ये इंद्रशक्ती हो, तो ये कार्य होगा नं! हमारे मन में जो तर्क-कुतर्क पैदा करते है, ऐसे लोगों से बात मत करना। बच्चों पर इतना विश्वास भी मत रखना! पर अविश्वास भी मत करना। हमेशा उन्हे आधार देना। लेकिन मेरा बच्चा गलत चीज में नहीं पड सकता, ये गलत है।
पिकनिक के लिए भेज देते है। दृष्यम् फिल्म देखीं है? कितने लोगों ने? देख लिजिये, जरुर देखिये! आपके बच्चे की कोई गलती नहीं, लेकिन उसे कैसे फँसाया जाता है।
रात को देर से आओ, चलता है! नहीं 'चलना' चाहिए! इतनी भी सहुलियत (सवलत) मत देना। बाद में तकलीफ होती है! क्या ये सही है?
Disipline के कारण हमें खडुस नहीं बनना चाहिए बच्चों के साथ!
आदरयुक्त भय, होना चाहिए! लोगों की बातों में किसी भी चीज के लिए मत आना!
यह 'बीज' बहुत देखना बाकी है। क्रेडिट कार्ड त्रिविक्रम भेजता है, और वहीं रिचार्ज करते रहता है।
श्रीगुरुक्षेत्रम् मंत्र के साथ... संवाद... ध्यान योग... चण्डिका की सेवा करते रहोगे। जितना विश्वास उतना ये रिचार्ज करता रहता है! और वो पैसे नहीं माँगता!
यह 'लं' बीज अगली बार देखेंगे। हर एक बीज देखते देखते चलेंगे।
यहाँ मंत्र चल रहा हो, तब भी, या घर पर करोगे, तब भी; "ॐ लं ॐ लं" बोलना शुरू कर दिजिए!
ॐ वं ॐ वं
और आखिर में सिर्फ ॐ ॐ बोलना! हमारे जो क्रेडिट कार्ड है; इसी क्रेडिट कार्ड से स्वाधिष्ठान चक्र भी बढता रहता है। इसी से बाकी के क्रेडिट कार्ड हम संपन्न करते रहेंगे ही!
जो भगवान ने भेजा है..वो सभी चक्रों के लिये समान है! हमारे प्रयासों से...उतनी ही हर चक्र की ताकत बढती रहती है।

शब्दांकन
मिलिंदसिंह फणसे
हम सब अंबज्ञ है।