Thursday, April 14, 2016

दि. 07/04/2016 बापूंचे पितृवचन

हरि ॐ दि. 07/04/2016
बापूंचे पितृवचन

श्री स्वस्तिक्षेम संवाद! जो भी संवाद करना चाहते हो, अपनी दादी के साथ, चण्डिकाकुल के साथ; कोई भी बात हो! कुछ अच्छा हो, तो वो भी बतायें! पुरे विश्वास के साथ; कि जो मैं मन में बोल रहीं हूँ, वो सुनती है! मन में बोलोगे, तो ही वो सुनेगी!
आप कुछ भी बात कर सकते हो! अगर बात करना नहीं चाहते; तो सिर्फ देखते रहो। मन में उसकी मुर्ती लाकर, बैठ सकते हो; लेकिन ये संवाद है! हमें कुछ सुनाई नहीं देगा, तो संवाद कैसे? उनकी भाषा ही अलग है। उनकी भाषा पवित्र प्रेम... तुम्हारी बुध्दी के साथ, प्राणों के साथ है। प्राणमय संवाद! प्राणों में बात छोडी जाती है। मन में क्यूँ नहीं?
कोई चाहता है, कि मेरा मन बदलो! तो वो नहीं हो सकता। ये Mind Control (मन-नियंत्रित) करना; अपवित्र बात है। मन पर control (नियंत्रण) करोगे, तो कर्मस्वातंत्र्य नहीं हो सकता! अगर राम भगवान, रावण का मन बदल देते, तो बात इतनी बढती हीं नहीं!
माँ भगवती, और उसका बेटा त्रिविक्रम; हमारा मन बदलने के लिए सहाय्य करते है। वो हमारे प्राणों में ऐसे बदलाव करते है कि, हम लोगों का मन बदल सकता है! अगर कोई मन बदलने का काम करता है, तो वो गलत मार्ग है। ये आदिमाता किसी के भी मन का नियंत्रण नहीं करना चाहतीं! मानव का क्षेत्र मन ही है। सब कुछ मन में ही चलता है। इसिलिए इसी क्षेत्र में बैठकर हमें बात करनी है। विचार अपने आप मन में आ जायेगा! जो आपको बदल सकता है। Mind Control (मनो-नियंत्रण) यह पवित्र मार्ग की बात नहीं है। No one is authorised to control or change mind! (मन को नियंत्रित करने का या बदलने का किसी को भी हक नहीं)
जो अच्छा भक्त है, उसके मन में जो दोष है, जो भी गलती है; उसे सुधारने के लिए पुरी सहायता दी जाती है! यह सब करते हुए भी इन्सान के मन पर control (नियंत्रण) नहीं किया जाता। क्यों की अगर मन पर control (नियंत्रण) किया, तो वो इन्सान robot (यांत्रिक मानव) बन जायेगा!
हमारे जीवन का विकास करना है, इस लिए हमें खुद पढाई करके खुद पास होना है। योगिन्द्रसिंह का अच्छा article (लेख) आया है, कृपासिंधू में! How are we related to them? (हम उनसे कैसे जुड सकते है?) How are they related to us? (वो हमसे कैसे जुड सकते है?) (स्वस्तिक्षेम संवाद)

हरि ॐ
(अनिरुध्दाज् युनिव्हर्सल बँक ऑफ रामनाम की संख्या बताई)

चक्रों के बीज मंत्र को देख रहे है।
मुलाधार चक्र
इस चक्र के चार दल है। उनके बीज मंत्र...
वं: - स्वाधिष्ठान चक्र का मुलबीज! इसके बारे में बाद में देखते है।
'शं'   'षं'
इनका उच्चारण जरुर कर सकते है! किसी भी क्रम से कर सकते है। सिर्फ चक्र को देखते हुए बोलें! और श्रध्दा, विश्वास के साथ बोलें! इसके सिर्फ कंपन से 'तिनों देह में उचित कंपन पैदा हो रहें है'
बाकी के बीजों को बोलने की जरुरत नहीं है।
इन बाकी 'शं' और 'सं'
'शं' शांती... 'शं' से 'शमन' होता है।
हमारे मन में शांती नहीं है! जो बेचैनी है, तो वह शांत नहीं होगा। बेचैनी शांत होगी! शमन याने दमन नहीं! संतुलित action (क्रिया), संतुलित विचार! 'शं' बीज ये पवित्रता से जुडा हुआ है। शिव नाम का अर्थ, 'सबसे पवित्र' हमेशा शांती प्रदान करता है; रुद्र स्वरुप होकर भी!
रुद्र स्वरुप, श्रध्दाहीनों के लिए है! और उसी का 'भद्र' स्वरुप, श्रध्दावानों के लिए है। उसकी हर मुर्ती, उसका हर चित्र, हर अवस्था simultaneously (समकालीन) रुद्र और भद्र भी है। यह भद्रता, याने 'मंगलकर्ता' जो अच्छा बनना चाहता है, जो अच्छा लेना चाहता है, अच्छा देना चाहता है; उसके लिए!
हम कैसे है, उसपर उसका स्वरुप निर्भर है। हमें उसके दोनो स्वरुप चाहिए! शिवजी हमें harm (नुकसान) करने वाले नहीं है। दोनो रुप हमारे लिए आवश्यक है। Equally (समांतर) उसका रुद्र स्वरुप हमारे स्थुल शरीर में, सारी बिमारियों का नाश करने के लिए है।
शेरनी, दुसरों के लिए भयानक होगी पर अपने बच्चों के लिए नहीं! यह ध्यान में रखें!!
अशुभ का नाश होना चाहिये, इसलिए दोनो रुप चाहिए!
रुद्र स्वरुप और भद्र स्वरुप; दोनो अलग अलग भी है और एक भी है!
हम अगर किसी की जिंदगी के साथ खिलवाड कर रहें हैं; तो ये चीज माँ को मंजुर नहीं! अगर गलती से हुआ, तो क्षमा मिलेगी।
लेकिन अगर जानबुझकर जहर घोल रहे है, तो रुद्र स्वरुप लेगा! जब तक वो दुसरे के जीवन में जहर घोलना बंद नहीं करता, तब तक क्षमा नहीं करता!
जो इन्सान दुसरों से तकलीफ मिलने के कारण आत्महत्या करता है; उसे अपना Revenge (बदला, सुड) लेने के लिए 'पिशाच्च योनि में जाने की permission (आज्ञा) है।

उसके पास बडा न्याय है। अपने पास जितना है, उतना ही खर्चा करो! दिखावे की बातों में नहीं आना! किसी को फोकट (मुफ्त) नहीं देना।
ऋण, वैर (बैर), हत्या में नहीं आना। माँ-बेटे; पिता-पती को दिया तो वो चलता है

ऋण से हत्या हो गयी! तो वैर (बैर) भी हो गया।
वो 'शिव' जब तक गुस्सा नहीं होता; तब तक बच जायेगा। किसी के जीवन के साथ खिलवाड मत करो। किसी का अच्छा कर सकते हो, तो करो! गलती हो गयी फिर भी!
ये 'शं' बीज, भद्र बीज! जो रुद्र का है, वो ही भद्र का है।
मेरी जिंदगी में कोई जहर ना घोलें, वैसे ही; मै भी किसी कि जिंदगी में जहर ना घोलूं!!
यह ध्यान करो!
अच्छे लोगों को तकलीफ कब आती है? जब उन्हे आधार देने के लिए कोई नहीं है, तभी
बुरे लोगों की जब सब ताकत, कम हो जाती है; तब सारे दुख उनपर फेंके जाते है! रोने के लिए कभी कंधा भी देने के लिए कोई नहीं होता! सिर्फ पैसे से कुछ नहीं होता!
ये 'शं' बीज, रुद्र और भद्र का है। हमें दोनो चाहिए! हम कोशिश करते रहें कि, हम किसी को ना फँसाये!!
हम भक्ती मार्ग पर है, तो ऐसा नहीं होना चाहिए; कि और कोई मुझे फँसाकर चला जायें। भक्ती से हमारी बुध्दी और तेज होनी चाहिए! I.Q. बढता है।
ये बीज हमारे मुलाधार चक्र में है। जहाँ से सबकुछ उत्पन्न होता है।
शिवजी, जो अंदर बैठा है, वो हमारा जहर पिने के लिए हमेशा तैय्यार होता है। हम किसी के जिंदगी में जहर घोलते है, मतलब वो जहर शिव जी को पिलाते है।
यह 'लं' में बाकी सब बीज आ जायेंगे।
किसी के मन में बहोत वासना उत्पन्न हुयी है!
Fr eg (उदाहरण के तौर पर) अगर किसी को भुख बहुत लगी है, तो ये 'शं' बीज 'लं' बीज; भुख कम करते है। किसी को भुख ही नहीं लगती! Normal (साधारण) भुख कि तरफ लायेंगे! जो विकार और वासनाएँ है, सारे षडरिपूं है, ये सारे षडरिपू मुलाधार चक्र से आते है। इस 'लं' बीज के अंदर 'शं' बीज आता है।
पुरे भाव के साथ, "ॐ लं" बोलोगे, तब सारे बाकी बीज जितने percentage (फिसदीं) में आवश्यक है! मुलाधार गणेश, अपने आप 'लं' बीज को प्रेरित करेंगे!
इसलिए भगवान पर faith (विश्वास) होना चाहिए!
हम लोग मुलाधार चक्र के 'शं' कार्य जो है... 'लं' बीज का, उसे जाने!! कि मैं किसी के जीवन में जहर नहीं घोलुँगा! और किसी को घोलने नहीं दुँगा। इससे जो फायदा मिले वो जरुर मिलेगा।
विश्वास बहुत महत्वपुर्ण काम करता है! सिर्फ भगवान के प्रती नहीं, हर रिश्ते में, हर काम में!
मेरे बच्चे किसी पे भरोसा नहीं रख सकते! लेकिन सब पर doubt (शक, संशय) करते फिरें, ऐसा भी ना हो!
बाहर 80% से ज्यादा खराब है। संस्था में 80% लोग अच्छे है। And I am proud of it (और मुझे इस पर गर्व है) खुद का भी सम्मान करना सिखों! मेरे बच्चों, 80% से उपर, ज्यादा लोग अच्छे है। मेरे सारे बच्चे अपने आप में भी improved (सुधारणा) है।
अगर हम माँ को दादी मानते है, तो ऐसी स्थिती में मेरी गलतियाँ सिर्फ 20% बाकी है। अभी श्री शब्द ध्यान योग करेंगे!
इस वसुंधरा पर सारे विघ्नों का नाश करनेवाला जो स्वामी है, वो गणेश है।
बाकी जो obstructions (अडचनें) आती है, उसके लिए 'मुलार्क गणेश' भी तैय्यार है।
इन्सान के लिए सबसे ज्यादा, 'मुलाधार चक्र' अहमियत रखता है।
मुलाधार चक्र हमारे लिए बहुत आवश्यक है।
आहार, विचार, सब कुछ इस चक्र के साथ जुडा हुआ है!
दुसरों के जीवन में जहर घोलना बंद करना है। गलती से हो गया हो तो सुधारने का प्रयास करें! और खुद के जीवन में भी घुलने नहीं देना। शिव जी, जो भी जहर आयेगा, वो पिते रहेंगे।

शब्दांकन
मिलिंदसिंह फणसे
हम सभी अंबज्ञ है।

Monday, April 4, 2016

गुढी पाडव्याची बापूंनी सांगितलेली कथा

गुढी पाडव्याची बापूंनी सांगितलेली
कथा

हरि ॐ
" गुढीपाडवा "
ज्या दिवसाची वाट पाहत,
श्री रामांची प्रतिमा डोळ्यात अखंड चौदा वर्षे
धारण करणाऱ्या त्या माता कौसल्येचा तो हा दिवस .
ज्या दिवसाची वाट पाहत,
भक्तश्रेष्ठ भरताने चौदा वर्षे श्रीरामांच्या पादुका
सिंहासनावर ठेऊन राज्यकारभार केला तो हा दिवस.
ज्या दिवसाची वाट पाहत,
चौदावर्षे त्यांच्या लाडक्या श्रीरामांप्रमाणे
संन्यासी जीवनव्यथित करणाऱ्या अयोध्यावासियांचा तो
हा दिवस .
प.पू. अनिरुद्ध बापूंनी त्यांच्या रामरक्षेच्या
प्रवचनातून "गुढीपाडव्याच्या" दिवशी घडलेली कथा
सांगितली होती.

हरि ॐ
ज्याक्षणाची वाटपहात सर्वांचे डोळे लागले होते तो क्षण
आला, श्रीराम अयोध्येत परत आले. अयोध्येतल्या सर्व
दिशांनी आनंद बहरत होता. सर्व चराचर वेगळ्याच मंत्रमुग्ध
वातावरणात वावरत होते. त्यांचे प्राणप्रिय श्रीराम ,माता
सीता, लक्ष्मणासह ,सुग्रीव आणि समस्त
वानार्सैनिकांसाहित परत आले होते. हनुमंत भक्तश्रेष्ठ
भरताच्या प्रतिज्ञेमुळे आधीच पोहचले होते.
राजमहालात पोहचल्यावर सर्वांचेच जोरदार स्वागत झाले.
श्रीरामचंद्रानी राजमहालातील सर्वांचे क्षेमकुशल विचारले.
नंतर श्रीराम मातासीतेसह लक्ष्मण,भरत, आणि हनुमंत
अयोध्येतून फेरफटका मारावयास निघाले. चौदा वर्षे
संयासाप्रमाणे जीवन जगणारी अयोध्या नगरी आज विविध
रंगांनी नटलेली होती . विविध रांगोळ्या आणि फुलांनी रस्ते
सजलेले होते .सर्व अयोध्या वासियांनी आपल्या लाडक्या
श्रीरामचंद्राच्या स्वागतासाठी रंगबेरंगी वस्त्रांची गुढी
दारात उभारली होती .
सर्व अयोध्या वासीयांच्या चेहऱ्यावरील आनंद पाहून पंचायतन
सुखावत होते, आशीर्वाद देत होते.
अयोध्येचे हे सौंदर्य न्याहाळताना लक्ष्मणाची नजर एका
गुढीवर गेली.जी गुढी फक्त साध्या,जुन्या वस्त्राची उभारली
होती . त्यावर लक्ष्मणाने श्रीरामांना विचारले ," बंधू ! ती
गुढीच फक्त का बरे साध्या वस्त्राची उभारली आहे?"
त्यावर श्रीराम म्हणाले ,"चला आपण त्या घरात जाऊन
पाहूयात."
पंचायतन त्याघरी पोहचल्यावर त्या घरातील सर्वांना
अतिशय आनंद झाला . पंचायत्नाच्या स्वागतासाठी
सर्वांची एकाच लगबग उडाली . श्रीरामचंद्रा बरोबरील
सर्वांचे त्यांनी योग्य रीतीने स्वागत केले.सर्वांचे क्षेमकुशल
विचारून श्रीरामचंद्रांनी प्रश्न केला ," फक्त आपल्या
घरासमोरील गुढी का बरे साध्या वस्त्राची उभारली
आहे ?"
यावर त्या घरातील एक व्यक्ती म्हणाला " देवा,आपण येणार
म्हणून आम्ही सर्वजण आनंदून गेलो होतो. पण आमच्या
घरातील सर्वात वयोवृद्ध व्यक्ती खूपच आजारी होती म्हणून
दुखी होतो . मनोमन तुमची प्रथांना करत होतो कि त्यांना
तुमचे दर्शन होवो.पण त्यांनी त्यांची अखेरची घटिका
ओळखली होती .त्यांनी घरातील सर्वांना जवळ बोलावून
घेतले व म्हणाले,' मला काही श्रीरामांचे दर्शन घेता येणार
नाही असे वाटते.माझ्याकडे आता मोजकेच श्वास शिल्लक
आहेत . तेव्हा माझ्या मरणानंतर तुम्ही शोक करत बसू
नका.त्याऐवजी श्रीरामचंद्राच्या स्वागतात आनंदाने
सहभागी व्हा..' 'माझी फक्त एकच इच्छा आहे ,तुम्ही
त्यांच्या स्वागतासाठी जी गुढी उभाराल ती मात्र ह्या
वस्त्राने उभारा , कारण श्रीराम जेव्हा अयोध्येतून निघाले
होते तेव्हा त्यांची चरण धूळ या वस्त्रामध्ये मला
'कृपाशीर्वाद' म्हणून मिळाली होती.' "
सर्वांचे डोळे पाण्याने भरले .श्रीरामांच्या चेहऱ्यावर अतीव
करुणा दाटली होती. ते गुढी जवळ गेले व त्यांनी आपल्या
कंबरेचा शेला काढला आणि त्या गुढीवर लावला व त्या
गुधीवरील ते जुने वस्त्र आपल्या कंबरेला बांधले.तो क्षण
सर्वांच्या मनाला मोहून गेला.तो क्षण श्रीरामचंद्राची
त्यांच्या भक्तांबध्ल असणार्या प्रेमाची साक्ष देत होता.
त्यानंतर सर्वजण राजमहालात परत आले. आता सर्व
वानार्सैनिकांनी दिलेल्या योगदानाबद्दल त्यांचा सत्कार
करण्याचा कार्यक्रम माता सीतेने आखला होता.त्यानुसार
सर्वाना भेटवस्तू, त्यांचा उचित सत्कार करण्यात आला. शेवटी
हनुमंताची वेळ आली .आता माता सीतेला प्रश्न पडला कि
हनुमंताला कोणती भेट द्यावी? त्यावर त्यांनी हनुमंतालाच
विचारले,"तात! आपणाला आम्ही कोणती भेट द्यावी?
"त्यावर हनुमंत म्हणाले , "माते, श्रीरामांनी मला सर्व काही
दिले आहे . पण तू म्हणतेच आहेस तर मला आज एका गोष्टीचा
मोह होतोय, 'श्रीरामांनी त्यांच्या कंबरे भोवती
बांधलेल्या त्या जुन्या वस्त्राचा.' "
त्यावर माता सीतेने स्वतः ते जुने वस्त्र श्रीरामांच्या कंबरेचे
काढले आणि हनुमंताच्या कंबरेला बांधले.
भक्तांच्या प्रेमा पेक्षा त्यांच्यावर दुप्पट प्रेम करणाऱ्या
श्रीरामांचा आणि हनुमंताचा सर्वांनी जयजयकार केला.
"प.पू .बापू त्यावेळी म्हणाले होते कि," ही कथा जो कुणी
गुढी पाडव्याच्या दिवशी स्मरण करेल त्याला काय मिळेल
ते मी आता सांगणार नाही."
!! हरिओम !!

सर्वांना गुढीपाडव्याच्या व नववर्षाच्या अनिरुद्धमय
शुभेच्छा !!