Friday, December 25, 2015

Pitruvachan 24/12/2015

हरि ॐ दि. 24/12/2015
बापूंचे पितृवचन

आज क्या है? दत्तजयंती.. यानी क्या है? दत्तात्रय का जन्म दिवस है। ये जो दत्तजयंती है... जो जन्म दिवस हम लोग मनाते है... इसी दिन अनसुया माता का भी जन्म दिन मनाया जाता है। उसके मातृत्व का भी जन्म दिन मनाया जाता है। ये जो 12 मास है... उसमें यह मार्गशिर्ष (अगहन) महिने में... कृष्ण भगवान ये कहते है... 
यानी क्या! 
ये महिना ऐसा है.. कि आप भारत वर्ष में हो, तो भी... या भारत वर्ष के बाहर हो, तो भी! इस मार्गशिर्ष (अगहन) महिने की रचना ही ऐसी है.. कि पृथ्वी का जो भ्रमण है... उसकी प्रदक्षिणा को ध्यान में रखकर... जो 'उत्तरायण, दक्षिणायन' शुरू होता है... (22 दिसंबर से उत्तरायण शुरू हो गया है) इसे ध्यान में रखकर बाकी सारे महिने बनाये गये है। ये earth (पृथ्वी) जो है, ये खुद ही एक magnet (चुंबक) है.. इस महिने की रचना ध्यान में रखकर बाकी महिने बनाये गये है।
उसके तीन साल बाद 'अधिक मास' आता है।
जो पृथ्वी का 'चुंबक' है..उसके जो परिणाम अच्छे होते है, हमारे लिए! वो सबसे ज्यादा इसी काल में होते है। फिर हम कहाँ भी हो! चाहे मुंबई में हो... या बाहर हो... पृथ्वी के भ्रमण...चुंबकीय क्षेत्र के कारण...सबसे ज्यादा सकारात्मक.. आरोग्यदायी.. हमें आरोग्यवान रखनेवाले.. इस काल में मिलते है। इसलिए इस महिने को मार्गशिर्ष कहा गया है। मार्ग यानी 'रोड'  हमारे जीवन में कई रास्ते बनते है... हमारे जीवन के रास्ते.. इन सारे रास्तों पर जो गलतियाँ, दोष उत्पन्न होते है... उनको सुधारने का...repairing (ठीक करने) का काम मार्गशिर्ष महिने में हम लोग कर सकते है। इस काल में, हमें जो भी vibrations (स्पंदने) चाहिये, वो इस समय मिलते है। इसलिये ये मार्गशिर्ष महिना होता है।
शिर्ष यानी सर...उंचाई जहाँ है, वो मार्गशिर्ष है! हमारे जीवन में हम यश चाहते है, तो ये महिना है। व्रताधिराज का जो समय है; उसकी रचना ऐसे ली गयी है। इस काल में हम जो भी प्रार्थना करते है... वो 'वर्धिष्णू वृत्ती' से! उसे उसी क्रम से step by step उसके जीवन में जो भी खामियाँ है, जो भी रास्ते में दोष उत्पन्न हुए है; पुण्य से इन्सान दुर कर सकता है। लेकिन उसके बहुत 'ऊपर' जाकर...
पुरुषार्थ ग्रंथराज के हर पन्नों में भी देवदुत है। उसमें जो मंत्र है, उसमें से हम चुने, तो हमें ये सारे के सारे देवदुत... 'जितनी श्रध्दा और विश्वास के साथ लोग ये व्रत करते रहेंगे' उससे ज्यादा ताकत से ये देवदुत काम करेंगे।
उसमे कितने पन्ने है.. हर पन्ने पर 2 देवदुत है। फिर अगर 1000 पन्ने है... 3 ग्रंथराज के; तो 2000 देवदुत हो गये। हर एक के लिए!
जो कोई पढ रहा है, उस हर एक इन्सान के लिए 2000! अगर एक परिवार में 5 लोग पढ रहे है! लेकिन सब एक साथ नहीं पढ रहे, पर सभी कर रहे है, तो वहाँ 10000 देवदुत काम करेंगे। उपासना केन्द्र में अगर 100 लोग आते है... तो वहाँ 2 लाख देवदुत काम करेंगे... ये जो श्रध्दावानों का संघ है, तो समझ लो, वहाँ एक करोड है, तो 1 करोड × 2000 तो = 2 हजार करोड देवदुत...सारे श्रध्दावानों के लिये कार्यरत रहेंगे, पुरे साल भर!  तुम्हारे देवदुत सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, तुम पर जो भी प्रेम करते है.. तुम्हारी सहायता करते है; उनके भी काम आयेंगे। शत्रू के काम नहीं आयेंगे। वर्धमान व्रत के समय जो, ये उपासना नियमित करते है, तो एक साल में कितने सारे देवदुत मिलते है...हम लोग खुद निर्माण कर सकते है... हमारे लिए!
ग्रंथराज की उपासना हम जो करते है, पुरे मन से करते है! भगवान के साथ 'झुठ मत बोलो! जो पुरी प्रामाणिकता के साथ ये व्रत करते है...तो हमारे लिए हम इतने सारे सहायक बनाते है। सुंदरकांड में  "तुम्ह ते प्रेम, राम के दुना"
वो भगवान... उसकी माता... वो चाहे, तो आपको; इन देवदुतों से दुगुना देवदुत;
आप अकेले है...तो भी आपकी श्रध्दा देखेंगे, इसपर ही सारे मार्कस् दिये जाते है। उसके जीवन के लिए जो आवश्यक है, तो वो 2 करोड भी भेज सकती है!
ये सारे देवदुत, आदिमाता ने ही उत्पन्न किये है। (अपने घर का दिपावली 'कंदिल' खुद बनाके देखो! बहुत अच्छा लगता है)
उस आदिमाता के लिए... समुद्र, परबत बनाना, ये सब चुटकी बजाने जितना आसान है। पर हम लोग 'तैयार' नहीं है! जो आदिमाता देती है, उसका स्विकार करने के लिए!
इसी लिए यह व्रत बडे प्यार से करना चाहिये।
जितना हो सके, उतने सारे के सारे नियमों के साथ करो! अगर कर सकते है सभी नियमों का पालन.. थोडे कष्ट लेकर! तो जरुर करो।
ग्रंथराज पढते रहो.. हमारे मन में, मस्तिष्क में अच्छे विचार बनेंगे; जो हमारे लिए राहें, बनायेंगे, मार्ग बनायेंगे! कोई part (भाग) समझ में नहीं आया.. पढकर आगे चलो.. जितना आवश्यक है, आपके लिए समझना! वो आपको समझेगा ही! वो त्रिविक्रम आपके जीवन में ऐसे उदाहरण लाकर देगा, के जिस भाग में से, पन्ने का, मतलब पढकर नहीं समझ सकते; उसका मतलब आपके जीवन में 'अच्छी घटना के साथ अच्छे तरीके से समझाएगा। ये 'उसकी' जिम्मेदारी है! आपकी नहीं!!
इस साल से... ये नया साल 'उपासना' का है... खुद का आध्यात्मिक बल बढाना.. भगवान के नजदीक जाना.. जो भी हम करते है.. उससे; हममें और भगवान में जो दुरी है, वो कम होती है। हम एक कदम चलते है.. तो वो 'त्रिविक्रम' तीन कदम चलता है। हेमाडपंत, चांदोरकर, दिक्षीत, ये सभी आगे जा सकें.. हमें भी अपनी जिंदगी को सुंदर, सुखी बनाना है। हम ये व्रताधिराज बहोत प्यार से करेंगे। सही investment (लागत) यहाँ है। सब से उपर से हमें मदद करनेवाली... इस अध्यात्म से है। इसीलिए ये पुरा साल 'अध्यात्म' के लिए है।
यह आनेवाला साल दुसरे लोगों के लिए, श्रध्दाहिनों के लिए polarization (ध्रुव्वीकरण) है, बदलाव है। लेकिन श्रध्दावानों के उपर कोई आँच नहीं आयेगी।
इस साल हमें ये मन में fix (पक्का) करना चाहिये कि यह व्रत पुरे विश्वास से करना होगा। अगर घर में कोई नहीं कर रहा, तो समझाओ!
लेकिन करो।
श्रध्दावानो ने कुछ प्रश्न पुछे थे... चण्डिका प्रपत्ती के बारे में! चण्डिका प्रपत्ती.. महिलाओं के लिए, करते वक्त कुछ भी डेकोरेशन कर सकते है।
अच्छे तरीके से अगर महिलाएँ (फेर धरुन) गोल घेरे में... अगर गाना गाए, गरबा करना चाहती है; तो बहुत अच्छी बात है। कोई भी बंधू या पिता... प्रणाम करने के लिए आ सकते है। लेकिन 'नाचना' सिर्फ महिलाओं के लिए ही है।
भक्ती संगीत गा कर सभ्यता से नाच सकते है।उत्साह के साथ उत्सव मनायें!
इस साल प्रपत्ती में देखना चाहता हूँ... मेरी बेटीयाँ, नाचते, हँसते, कुदतें यह प्रपत्ती मनायें... भक्ती संगीत के साथ साथ!!

शब्दांकन
मिलिंदसिंह फणसे
हम सब अंबज्ञ है।

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