हरि ॐ दि. 04/02/2016
बापूंचे 'पितृवचन'
एक महिने के बाद.. श्री शब्द ध्यान योग के बाद सिर्फ साडे तीन मिनट कुछ स्पेशल होनेवाला है। इसलिए अभी से श्रीश्वासम् के बाद जहाँ हम लोग बैठे है...वहाँ से..हमारे ये जो सप्तचक्र है, उनके साथ हम direct (सिधे) जुड जायेंगे।
ॐ लं, यह पृथ्वी बीज है।वसुंधरा बीज है। रामायण की कथा हम लोग जानते है! ये 'राम-लक्ष्मण-जानकी' की कथा है। इस कथा में नाद ब्रम्ह है। जानकी, जनक की कन्या है। जनक को भुमी से मिली थी, ये भुमी-कन्या है। यानी ये जानकी, इस लं बीज की साक्षात स्वरुप.. माँ जानकी है। यह सीता मैय्या directly (सीधे) लं बीज का आविष्कार है! और उसकी शादी ram के साथ हो रही है (रं बीज) जो मणिपुर चक्र में है। श्री राम, 'रं' बीज के आविष्कार; यानी 'सुर्य' बीज का आविष्कार है। 'लं' बीज का विवाह 'रं' बीज के साथ!
लं बीज का connection (नाता) सीधे रं बीज यानी मणिपुर के साथ होता है। राम नाम लेने लगते है; तो मुलाधार चक्र का संबंध...
इन के बीच रावण आ जाता है।
राम, 'पुरुषार्थ' है! और 'सीता' पुरुषार्थ का 'फल' है! और उनके बीच 'भय' आता है... रावण... भय का बीज है.. उसका ही आविष्कार रावण है।
मुलाधार की और मणिपुर चक्र की क्रिया.. उनका एक-दुसरे के साथ रहना आवश्यक होता है! और दोनों के बीच 'स्वाधिष्ठान' चक्र है।
हनुमान जी यहाँ से छलाँग मार कर उधर जा सकते है! बाकी को सेतू की आवश्यकता है।
हनुमान जी 'महाप्राण' है। मुलाधार से लेकर सहस्त्रार चक्र तक; इनका ही प्रभाव चलता है।
जब भी हम, राम नाम लेते है.. तो मुलाधार, स्वाधिष्ठान और मणिपुर.. हमारी पेशियों को स्वस्थ रखने के लिए बहोत आवश्यक है। एक राम नाम लेने के साथ ये तीनो चक्र, एक दुसरे के साथ aligned हो (जुड) जाते है।
जो भी पिशाच्च है, भुत है; उसके 'लिंग-देह' के पास इन तीनो चक्र के बीज नहीं होते! जिसके पास शरीर नहीं है, उसका भी 'भय' हमारे मन में पैदा होता है। राम नाम लेने के साथ; उस भुत पिशाच्च के साथ 'शरीर ना होने' के कारण यह राम नाम भय का नाश कर सकता है।
हमारे पास तीनो चक्र है! इनके होने के कारण.. हम राम नाम लेते है, तो वो हमारे शरीर में गुँजने लगता है! और वो भय का नाश करता है। इसलिए भय लगने पर राम का नाम लेते है! इसके पिछे ये science (शास्त्र) है।
मेरे मन में भय है, मतलब "मैं किसी से छोटा हूँ" ऐसा नहीं होता! भय है, तो भय है! यह accept (स्विकार) किजीए! कोई भी भय, जो शरीर से जुडा है! वो राम नाम तीनो चक्र सामर्थ्यवान होने के कारण!
श्री शब्द ध्यान योग.. स्वस्तिवाक्य और उसकी ताकत से 'भय' अपने आप कम होनेवाला है।
शुरुआत, इसकी भुमी से होनी चाहिये!
राम नाम के तीन बीज है... र+अ+म... इनके स्पंदन.. हमारे तीनो चक्रों को एकसाथ कार्य करने के लिए ताकत, प्रेरणा देते है।
"राम भरोसे" ये हमेशा सुनते है! मतलब राम पर भरोसा रखकर! पुरा विश्वास...कि राम मेरा भय दुर करने वाले है! और जो पहला कदम लेते है, वो राम भरोसे है।
राम... एक वचनी... एक बाणी... एक पत्नी है; वो कभी धोखा नहीं देता! आपके खिलाफ जो आता है, उसे 'राम-बाण' मारने के लिए तैय्यार है! और उसके बाण कभी खत्म नहीं होते! ये भरोसा रखो!!
आप भक्ती नहीं करोगे, तो भगवान कैसे प्रसन्न होंगे? गलत! भगवान को आपकी भक्ती की कोई आवश्यकता नहीं है।
भक्ती करनी है... हमारे लिए! उसे प्रसन्न करने के लिए भक्ती की आवश्यकता नहीं! कुकर्मी है, उनका जो भगवान होता है... उनकी ताकत बढाने के लिये; साधना करनी पडती है।
हमारे भगवान के पास 'सारी' ताकत होती है। उसकी कृपा का स्विकार करने के लिए हमें भक्ती करनी पडती है।
भगवान हमें जो देना चाहे, अपने पास रखने के लिए.. हमें जीवन में उसका विनियोग करने के लिए.. हमारी थैली फटी नहीं होनी चाहिए!
इसलिए मेरी भक्ती चाहिए! मेरी फटी हुई झोली सिने का काम करती है! ये पार्वती.. सरस्वती.. जानकी; वो सिने का काम क्यूँ करती है? क्यों की वह खुद 'भक्तिरुपिणी' है। यह 'थैली' कोई चीज नहीं है! हमारा अपना 'मन' है! हमारा मन चारों ओर से 'फटा हुआ' होता है! गलत काम किया.. बहुत बडा शोक.. दुख हुआ.. मन फट गया!!
मन विशाल होता है। ये 'थैली' याने 'मन'
ये फट गयी, तो उसे सिने का काम यह 'आल्हादिनी' राधा... जानकी करती है।
उसके लिए एक करोङ बार जाप करना पडेगा; ऐसा नहीं है।
लेकिन थोडी सी 'सबुरी' रखनी आवश्यक है नं!!
संत तुलसीदास का जन्म हुआ, तब भी वो राम नाम ले रहे थे! उन्हे एक दाँत था! उन्हे राक्षस समझा!
हमारे शोक, दुख, पाप-कर्म, गलतियाँ; हमारे मन को फाँडते रहते है और भगवान की कृपा 'मन' में ही उतरती है... नहीं... चित्त में उतरती है! चित्त यानी मन का ऐसा भाग, जो भगवान के साथ जुडा हुआ है।
विश्वास के कारण ही चित्त, जुडा हुआ होता है।
और देवता चित्त न धरई।।
याने, मन को चित्त बनाने का काम सिर्फ हनुमान जी करते है। हमें भक्ती करनी चाहिये!
विश्वास रखना चाहिये!
किसी भी रुप की भक्ती किजीये! पवित्र देव की उपासना किजीये!
किसी एक रुप को अपनायें! श्री पुरुषार्थ ग्रंथराज के साथ ये बहोत आसान होगा। पुरी फॅमिली है।
एक बार हम त्रिविक्रम के साथ, श्री राम के साथ जोड लेते है, तो उनकी सारी फॅमिली (परिवार) आपकी हो गयी समझो! हम लोग हमेशा बोलते रहते है.. हम अकेले है, हमारा कोई नहीं है!
लेकिन अगर त्रिविक्रम हमारा है। एक बार त्रिविक्रम को 'डॅड' बोल दो! तो उनके सभी रिश्तेदार आपके हो गये! Permanently (हमेशा के लिए)
पृथ्वी पर हो... पृथ्वी से जुडे हुये हो, तो 'रं' बीज की एक ओर लखन जी है और एक ओर सीता जी है!
हनुमान जी, माँ अंजना भी हमारे हो गये!
माता कैकयी भी, जो राम को प्रेम करने वाली थी, वो ही होगी!
Exam (परिक्षा) के साथ सोचेंगे... इतने सारे रिश्तेदार आनेवाले है!
हम जो बडे नाचते है...हमें किधर भी जाना है, तो हमारा पुरा परिवार हमारे साथ है।
शब्दांकन
मिलिंदसिंह फणसे
हम सब अंबज्ञ है।
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