Monday, February 29, 2016

नंदीपक्ष

नंदीपक्ष

अर्थात शिवपंचाक्षरी स्तोत्र पठण आणि वालुकेश्वर पूजन.

नंदीपक्ष, महाशिवरात्रीच्या सात दिवस आधी आणि नंतर सात दिवस आणि महाशिवरात्रीचा दिवस धरुन जो पंधरवडा  असतो त्याला नंदीपक्ष असे म्हणतात.

नंदी नावाच्या एका ऋषीने हे शिवपंचाक्षरी स्तोत्र रचून व त्याचे पंधरा दिवस सतत पठण करुन परम शिवाची आराधना केली. त्यामुळे ह्या पंधरा दिवसाना नंदीपक्ष नांव पडले आणि पक्ष म्हणजे पंधरवडा पवित्र मानला गेला.

आराधना ज्योती ६२ मधील शिवपंचाक्षरी स्तोत्र बापूनी आपल्याला ह्या पंधरा दिवसांत  दर दिवशी निदान एकदा तरी म्हणायला सांगितले होते तसेच जो कोणी ५, ११, २१ किंवा त्याहून अधिक वेळा म्हणू शकला तर फारच चांगले.

जितक्या वेळेला पठण कराल तेव्हढे चांगलेच पण निदान तीन दिवस पठण केले तरी, निश्चित फळ प्राप्त होते… असे बापूंनी प्रवचनात सांगितले होते.

Friday, February 5, 2016

04/02/2016 बापूंचे 'पितृवचन'

हरि ॐ दि. 04/02/2016
बापूंचे 'पितृवचन'

एक महिने के बाद.. श्री शब्द ध्यान योग के बाद सिर्फ साडे तीन मिनट कुछ स्पेशल होनेवाला है। इसलिए अभी से श्रीश्वासम् के बाद जहाँ हम लोग बैठे है...वहाँ से..हमारे ये जो सप्तचक्र है, उनके साथ हम direct (सिधे) जुड जायेंगे।

ॐ लं, यह पृथ्वी बीज है।वसुंधरा बीज है। रामायण की कथा हम लोग जानते है! ये 'राम-लक्ष्मण-जानकी' की कथा है। इस कथा में नाद ब्रम्ह है। जानकी, जनक की कन्या है। जनक को भुमी से मिली थी, ये भुमी-कन्या है। यानी ये जानकी, इस लं बीज की साक्षात स्वरुप.. माँ जानकी है।  यह सीता मैय्या directly (सीधे) लं बीज का आविष्कार है! और उसकी शादी ram के साथ हो रही है (रं बीज) जो मणिपुर चक्र में है। श्री राम, 'रं' बीज के आविष्कार; यानी 'सुर्य' बीज का आविष्कार है। 'लं' बीज का विवाह 'रं' बीज के साथ!
लं बीज का connection (नाता) सीधे रं बीज यानी मणिपुर के साथ होता है। राम नाम लेने लगते है; तो मुलाधार चक्र का संबंध...
इन के बीच रावण आ जाता है।
राम, 'पुरुषार्थ' है! और 'सीता' पुरुषार्थ का 'फल' है! और उनके बीच 'भय' आता है... रावण... भय का बीज है.. उसका ही आविष्कार रावण है।

मुलाधार की और मणिपुर चक्र की क्रिया.. उनका एक-दुसरे के साथ रहना आवश्यक होता है! और दोनों के बीच 'स्वाधिष्ठान' चक्र है।

हनुमान जी यहाँ से छलाँग मार कर उधर जा सकते है! बाकी को सेतू की आवश्यकता है।
हनुमान जी 'महाप्राण' है। मुलाधार से लेकर सहस्त्रार चक्र तक; इनका ही प्रभाव चलता है।
जब भी हम, राम नाम लेते है.. तो मुलाधार, स्वाधिष्ठान और मणिपुर.. हमारी पेशियों को स्वस्थ रखने के लिए बहोत आवश्यक है। एक राम नाम लेने के साथ ये तीनो चक्र, एक दुसरे के साथ aligned हो (जुड) जाते है।

जो भी पिशाच्च है, भुत है; उसके 'लिंग-देह' के पास इन तीनो चक्र के बीज नहीं होते! जिसके पास शरीर नहीं है, उसका भी 'भय' हमारे मन में पैदा होता है। राम नाम लेने के साथ; उस भुत पिशाच्च के साथ 'शरीर ना होने' के कारण यह राम नाम भय का नाश कर सकता है।
हमारे पास तीनो चक्र है! इनके होने के कारण.. हम राम नाम लेते है, तो वो हमारे शरीर में गुँजने लगता है! और वो भय का नाश करता है। इसलिए भय लगने पर राम का नाम लेते है! इसके पिछे ये science (शास्त्र) है।

मेरे मन में भय है, मतलब "मैं किसी से छोटा हूँ" ऐसा नहीं होता! भय है, तो भय है! यह accept (स्विकार) किजीए! कोई भी भय, जो शरीर से जुडा है!  वो राम नाम तीनो चक्र सामर्थ्यवान होने के कारण!
श्री शब्द ध्यान योग.. स्वस्तिवाक्य और उसकी ताकत से 'भय' अपने आप कम होनेवाला है।
शुरुआत, इसकी भुमी से होनी चाहिये!

राम नाम के तीन बीज है... र+अ+म...  इनके स्पंदन.. हमारे तीनो चक्रों को एकसाथ कार्य करने के लिए ताकत, प्रेरणा देते है।

"राम भरोसे" ये हमेशा सुनते है! मतलब राम पर भरोसा रखकर! पुरा विश्वास...कि राम मेरा भय दुर करने वाले है! और जो पहला कदम लेते है, वो राम भरोसे है।
राम... एक वचनी... एक बाणी... एक पत्नी है; वो कभी धोखा नहीं देता! आपके खिलाफ जो आता है, उसे 'राम-बाण' मारने के लिए तैय्यार है! और उसके बाण कभी खत्म नहीं होते! ये भरोसा रखो!!

आप भक्ती नहीं करोगे, तो भगवान कैसे प्रसन्न होंगे? गलत! भगवान को आपकी भक्ती की कोई आवश्यकता नहीं है।
भक्ती करनी है... हमारे लिए! उसे प्रसन्न करने के लिए भक्ती की आवश्यकता नहीं! कुकर्मी है, उनका जो भगवान होता है... उनकी ताकत बढाने के लिये; साधना करनी पडती है।
हमारे भगवान के पास 'सारी' ताकत होती है। उसकी कृपा का स्विकार करने के लिए हमें भक्ती करनी पडती है।
भगवान हमें जो देना चाहे, अपने पास रखने के लिए.. हमें जीवन में उसका विनियोग करने के लिए.. हमारी थैली फटी नहीं होनी चाहिए!
इसलिए मेरी भक्ती चाहिए! मेरी फटी हुई झोली सिने का काम करती है! ये पार्वती.. सरस्वती.. जानकी; वो सिने का काम क्यूँ करती है? क्यों की वह खुद 'भक्तिरुपिणी' है। यह 'थैली' कोई चीज नहीं है! हमारा अपना 'मन' है! हमारा मन चारों ओर से 'फटा हुआ' होता है! गलत काम किया.. बहुत बडा शोक.. दुख हुआ.. मन फट गया!!
मन विशाल होता है। ये 'थैली' याने 'मन'
ये फट गयी, तो उसे सिने का काम यह 'आल्हादिनी' राधा... जानकी करती है।
उसके लिए एक करोङ बार जाप करना पडेगा; ऐसा नहीं है।
लेकिन थोडी सी 'सबुरी' रखनी आवश्यक है नं!!

संत तुलसीदास का जन्म हुआ, तब भी वो राम नाम ले रहे थे! उन्हे एक दाँत था! उन्हे राक्षस समझा!

हमारे शोक, दुख, पाप-कर्म, गलतियाँ; हमारे मन को फाँडते रहते है और भगवान की कृपा 'मन' में ही उतरती है... नहीं... चित्त में उतरती है! चित्त यानी मन का ऐसा भाग, जो भगवान के साथ जुडा हुआ है।
विश्वास के कारण ही चित्त, जुडा हुआ होता है।
और देवता चित्त न धरई।।
याने, मन को चित्त बनाने का काम सिर्फ हनुमान जी करते है। हमें भक्ती करनी चाहिये!
विश्वास रखना चाहिये!
किसी भी रुप की भक्ती किजीये! पवित्र देव की उपासना किजीये!
किसी एक रुप को अपनायें! श्री पुरुषार्थ ग्रंथराज के साथ ये बहोत आसान होगा। पुरी फॅमिली है।
एक बार हम त्रिविक्रम के साथ, श्री राम के साथ जोड लेते है, तो उनकी सारी फॅमिली   (परिवार) आपकी हो गयी समझो!  हम लोग हमेशा बोलते रहते है.. हम अकेले है, हमारा कोई नहीं है!
लेकिन अगर त्रिविक्रम हमारा है। एक बार त्रिविक्रम को 'डॅड' बोल दो! तो उनके सभी रिश्तेदार आपके हो गये! Permanently (हमेशा के लिए)
पृथ्वी पर हो... पृथ्वी से जुडे हुये हो, तो 'रं' बीज की एक ओर लखन जी है और एक ओर सीता जी है!
हनुमान जी, माँ अंजना भी हमारे हो गये!
माता कैकयी भी, जो राम को प्रेम करने वाली थी, वो ही होगी!
Exam (परिक्षा) के साथ सोचेंगे... इतने सारे रिश्तेदार आनेवाले है!
हम जो बडे नाचते है...हमें किधर भी जाना है, तो हमारा पुरा परिवार हमारे साथ है।

शब्दांकन
मिलिंदसिंह फणसे
हम सब अंबज्ञ है।

31/12/2015 बापूंचे पितृवचन

हरि ॐ दि. 31/12/2015
.      बापूंचे पितृवचन

2015... अभी 2016 शुरू होनेवाला है। ऐसे कितने साल आते और जाते है। पहला और आखरी दिन बडी उत्सुकता के साथ हम जिना चाहते है! बस, ये दो ही दिन... बीच में क्या चलता है, हमें पता नहीं होता। हम सिर्फ काल प्रवाह में चलते रहते है।

यह 'श्री शब्द ध्यान योग' है, श्रीश्वासम्, श्री स्वस्तिक्षेम संवाद, गुरुक्षेत्रम् मंत्र; इन चार स्तंभ से, हम कुछ भी बदल सकते है।'नक्की' हो सकता है! और हम हमेशा कहते है... पहला कदम तुम उठाओ! पर हम 'आरंभशुर होते है... पहले एक-दो दिन करते है! हमारे पास जितनी ताकत होती है, उसे use (इस्तेमाल) करते है... और धिरे से हमारी बाद में हवा निकल जाती है! और उसका blame (आरोप) हम किसी और पे डाल देते है। ये क्यूँ होता है? हमारे मन में सिर्फ पहला कदम ध्यान में होता है।

इसका मतलब, हमारा पहला  कदम, गलत होता है। पर ठीक से सोचिये, हर कदम पहला ही होता है! हर एक कदम जब हमारा पहला होता है; तभी हम दुरी पार कर सकते है। तो हमें क्या करना चाहिए?
पुरा 'जोर लगा के हैय्या' एक गड्डा खोदने के लिए ठीक है.. पर जीवन चलने के लिए ऐसा नहीं चलता। जितनी ताकत एक कदम उठाने के लिये जरुरत होती है; उसी ताकत के साथ ही कदम उठाओ!
शादी के दिन, एक ही दिन राजा होते है, हार होता है.. गहनें होते है, उत्साह होता है! दुसरे दिन से बालों की हवा निकलने लगती है। क्या एक दो साल बाद उतना ही उत्साह होता है?

ये जो साल है... यह पुरे शतक का... हम इसमें हमारी श्रध्दा को बढाकर अपनी ताकत बढा सकतें है। ये साल किसने तैयार किया? Why should I belive you? (मैं क्यूँ आप पर विश्वास करूँ?) लेकिन इसमें भी science (विज्ञान) है। 12 राशी होती है! सुर्य का भ्रमण होता है! तो उससे और हमारी पृथ्वी का चुंबकिय बदलाव में क्या क्या होता है? वो इस पर निर्भर होता है।

यह जो 'उपयुग' चल रहा है (2016) यानी इतने साल के पहले कालगणना, करनी शुरू हुई। उससे पहले मत्स्य उपयुग कहते है! तो यहाँ 'मीन' राशी का वर्चस्व होता है। यह मत्स्य, 200 साल पहले शुरू हुआ। यह continue होता (चलते रहता) है, 2592 तक!
इस युग में जो सब कुछ होता है, वो वैश्वि... वैदिक गणित से होता है।
इस मत्स्य युग में जो कालखंड है.. जो सत्ता है.. 7 नंबर की! हमारे शरीर में 7 धातू होते है! हमारे शरीर में active (कार्यरत) चक्र 7 है। हम सभी के लिए यह नंबर important (महत्वपुर्ण) है।

इसके साथ साथ... 7...18...36! 18 क्यूँ? तो वो माँ ने धारण किया है! उसका मुल रुप है। पर ये मीन है.. वो प्रथम अवतार होता है। वो कभी 6 हाथ की या कभी 100 की होती है! उसके लिए उसने 'मुल रुप' 18 हाथों का धारण किया है, हमारे लिए!!

2592 सालों के लिए उसने ये हमारे लिए रुप धारण किया है

7 इस नंबर से हम क्या जानते है; हमारे पास सात ग्रंथ है।

ग्रंथराज       तीन
माँ के ग्रंथ    दो
रामराज्य    एक
और सातवाँ आनेवाला है।

7 चक्र है...हमारे पास 7 स्तंभ भी है! 4 तो पता है!!
1) गुरुक्षेत्रम मंत्र
2) स्वस्तिक्षेम संवाद
3) श्रीश्वासम्
4) श्री शब्द ध्यान योग
5) + (6) + (7) त्रिविक्रम

सात में से तीन चीजें है ही! तुम कुछ करो या ना करो। सिर्फ एक विश्वास के साथ; कि ये हमारा सबसे प्यारा दोस्त है! और इससे ही श्रध्दा, सबुरी मिलते ही रहेंगी

इस त्रिविक्रम के वैसे ही... हमारा जीवन रहेगा! जैसे हम स्वस्ति वाक्यम् कहते कहते, पुजा करते है.. वो वैसा ही होता है। क्यों की 'वो' चाहता ही है... जो सही श्रध्दावान होता है; उसके पास यह तीन चीजें होती ही है।
हमारे जीवन में (7) स्तंभ आयें ही है!

इस 2016 में ही 'मत्स्य युग' का अंतिम चरण शुरू होगा। जिसका पहला चरण तीन घंटे बाद शुरू होगा। इस पर्व के हम सब साक्षीदार है। वो इस युग का अंतिम चरण है! वो अलग होगा! वो 'त्रिविक्रम' देख लेगा! हम ऐसे मोड पर है, जहाँ वसुंधरा बदलने वाली है। इसमें हमें concession (सहुलियत, सवलत) मिली है, कि "हमें उपासना करनी है"

क्योंकी, इस साल तुम जो भी कोई उपासना करोगे... रोज से भी ज्यादा... 7 गुना ज्यादा, फल 'माँ जगदंब की कृपा से देने का' त्रिविक्रम ने decide (पक्का) किया है।

कम-से-कम 7 गुना और ज्यादा से ज्यादा कितना भी! तो इस साल को waste मत (व्यर्थ मत गवाँना) करना! कहाँ भी जाओगे, मजे करिये.. फिर भी भक्ती करना मत छोडो..
कोई पागल कहेंगे, कहने दो... हम भक्ती बढातें रहेंगे! करते रहेंगे!
किसी को force (आग्रह) मत करना... जो करना चाहे, वो करें।

कलीयुग में हरिगुणसंकिर्तन ज्यादा important (महत्वपुर्ण) है। इसका होना जरुरी है! अपने मन में करो, तो भी अच्छा है... किसी और के साथ करो, तो भी अच्छा! तो यह साल कौनसा है?

"हरिगुरुगुणसंकिर्तन साल"

तो, हम त्रिविक्रम को 'बाप... माँ...दोस्त' जो भी मानते है, तो; वो है ही! साई-चरित्र पढेंगे...स्वामी की बखर पढेंगे... वगैराह!!
अपने मन को बार बार बताते रहेंगे... हर रोज कम-से-कम एक बार वो साई का संकिर्तन करना शुरू करो!!
सभी करोगे????

यह साल... बहुत महत्वपुर्ण है... हर एक के लिए!!

18 नंबर का महत्व हम जानते है!

36... इस साल 108 बार करने का जो 'फल' मिलता है, वो 36 बार करने से ही मिलेगा! यह एक ऐसी संख्या है, जो माता रेणुका...शिव गंगा गौरी का नंबर है! जो बुराई है... उसे बंद करने के लिए ये नंबर काम आता है।

हमारी खामियाँ कम करने के लिए... आज एक संकल्प करो..."ॐ कृपासिंधू... (कोई भी मंत्र) 36 बार रोज कहेंगे! ऐसा आसान नियम करना... पहले आसान ले लो... जितना हो सकता है, उसका ही संकल्प करें! ऐसा कुछ नियम जरुर करियेगा।

हमारे उपर...saturn (शनी) का प्रभाव कम होगा।

लेकिन ये 36 नंबर का निर्णय, त्रिविक्रम को बताकर जरुर किजिये, "करवा लेना त्रिविक्रम, हनुमान जी मेरी उँगली पकड कर चलना"

शब्दांकन
मिलिंदसिंह फणसे
हम सभी अंबज्ञ है!