हरि ॐ दि: 10/03/2016
. बापूंचे पितृवचन
आज आपण काही विशेष गोष्टींवर बोलणार आहोत! आपला 'श्रीश्वासम् झाला आणि अजुन बापू, एक एक वाढवत आहेत. सगळं मारुती च्या शेपटी सारखं वाढतच आहे. एका मिनिटात कमीत कमी 18 वेळा आपण हवा आत घेतो; तर मग संपुर्ण दिवसात किती श्वास घेतला, तरी त्या हवेचं ओझं होत नाही. त्यानुसार देवाचं 'सत्व' किती ही घेतलं, तरी त्याचं ओझं होणार नाही. आपल्या ग्रंथांमधुन कोणती ही उपासना करण्यास हरकत नाही. एक महिना करुन नंतर वेगळी केली, तरी चालेल!
देव, म्हणजे 'चण्डिकाकुलातील ज्या देवता आहेत, त्या सर्वांना केलेला नमस्कार नेहमी 'सच्चिदानंद स्वरुपाकडे पोहचत असतो.
मराठीत म्हण आहे, कि 'साठी मध्ये बुध्दी नाठी'
आप सभी जानते होंगे, कि सुत्र संचालन कहाँ से होता है। इससे कोई नहीं छुटा! दो दिन पहले; पौरससिंह और स्वप्निलसिंह ने एक जोक बताया!
भुत, प्रेम और झगडा करनेवाली बिवी, 'एक काला पानी' रहती है! तो मैने तुरंत हाँ कर दी।
हर किसी के दिमाग में सवाल आता है, कि "हम कौनसी उपासना करे?" गुरुक्षेत्रम् मंत्र का रोज पठन करना, आवश्यक है। कुछ उपासना नियमित रहनी चाहिए।
सर्व देव नमस्करोती....
हमारी जो भी इष्ट देवता, नगर देवता होती है! वो सभी, उस सच्चिदानंद स्वरुप का ही विकास है। पुरी जिंदगी हम हवा अंदर लेते है, तब calculate (गिनती) करें, की उससे हममें क्या बदल गया?
वैसे ही हम जितना ज्यादा सच्चिदानंद को ग्रहण करते है, उससे कुछ toctcity नहीं होती!
अभी पिछली बार मैने कहा था, "जैसे जमाना बदलता है, वैसे चीजें change (बदलती भी) होती है। पहले भी drugs (नशीले पदार्थ) थे; पर आजकल उसका प्रमाण ज्यादा हो रहा है। शराब भी ढेर सारी बढती जा रही है।
गलत लोग मिल जाते है! हम भी कैसे उसमें फँस जाते है, ये पता ही नही चलता!
सतयुग में 'कर्म स्वातंत्र्य' पहले 3 जन्मों के लिये 'झिरो' होता था। उसके बाद षङरिपू के आने से कर्म स्वातंत्र्य आता है।
त्रेतायुग में बढते हुये 25% (फिसदी) कर्म स्वातंत्र्य होता है।
और द्वापार युग में बढकर 50% होता है! और कलियुग में 75% तक ज्यादा होता है। इसलिये हमसे सबसे ज्यादा गलतियाँ होती है।
मेरा कहना, कभी गलत नहीं होता। सब में "मै मै मै, आता रहता है; और
जरुर है.. पर उसमें मेरी power से भगवान की power के साथ connection (जुडना) जरुरी होता है।
जितना भगवान का विस्मरण, उतना ही ज्यादा कर्म स्वातंत्र्य बढते जाता है। अब हमारे पास कम से कम 75% कर्म-स्वातंत्र्य होता है।
एक कहानी सुनो, एक चाची के पास एक लडका; पढने के लिये आकर रहता है। वह सभी कामों में मदद करता है, कॉलेज करता है; सब कुछ अच्छा करता है। अब उस बच्चे के माँ बाप, ने यह सोचा, कि ये लोग हमारे बच्चे से काम करवाते है! और फिर उनमें झगडा होता है।
हम कैसे (नजरिये से) देखते है; यह जरुरी होता है।
React (प्रतिक्रिया देने) होने से पहले कुछ तो सोचना चाहिये!
हर एक ने सोचना चाहिए कि, मैं इन्सान हूँ तो सामनेवाला भी इन्सान है। तुलना करते है। सभी कुकर्मों से हमें बचना है। उसका असर हम पर नहीं होना चाहिये। पिछले जनम में क्या किया है, किसे पता नहीं है। पर यह सब, 'त्रिविक्रम' जानता है! और जो 'त्रिविक्रम' को बाप मानता है; वो सभी उसके बच्चे होते है! और जो नहीं मानते, उनसे 'उसका' कोई रिश्ता नहीं होता!
जिसका खुन किया वो भी मेरा और वो खुनी भी मेरा; ये नहीं हो सकता।
बलात्कार में पिडित लडकी भी उसकी और वो करनेवाला इन्सान भी उसका; ऐसा नहीं होता! उसको क्षमा करने के लिये 'वो' तैयार होता है।
इसिलिए जो त्रिविक्रम को पुरी तरह 100% बाप मानता है, वो उसका होता है
जो कोई भी हो, त्रिविक्रम से प्यार करता है, उसको दस गुना ज्यादा प्यार करता है।
जो चण्डिका और चण्डिका पुत्र से प्यार करता है, उस पर कितने भी संकट आये, तो भी 'वो' संभालता है। अगर किसी ने कहा, कि "ये एक उँगली पर पकड कर स्टाईल मारता है; ऐसे बोलने वाले को त्रिविक्रम छोडता नहीं!
जो कोई त्रिविक्रम के बच्चों को और माँ को बुरा कहता है, उसे त्रिविक्रम; जहरिले कोब्रा को जिस तरह मारता है; उसी तरह 'पटक-पटक' कर मारता है! "अगर मेरे बच्चों को किसीने भी दंश किया, तो उस इन्सान को मैं 'पटक-पटक' कर मारुँगा" ये उस त्रिविक्रम का 'बोधवाक्य' है।
आज हम शिवगंगा गौरी का 'गदा स्तोत्र' देखने वाले है। वो दिखने में शांत है! पर उसकी बाजूओं में, गदा किसी पर सिर्फ नजर से फेंकने की ताकत होती है। माँ शिवगंगा गौरी की गदा कोई भी रुप में परिवर्तित होती है।
जिस चीज की, त्रिविक्रम के बच्चों को जरुरत होती है; वह उनके लिए कुछ भी बनकर आती है।
आपके बदन में बिमारी है, तो वह; 'धन्वंतरी' बनके आयेगी! समुंदर में नैया बनकर आयेगी।
सिर्फ "एक विश्वास असावा पुरता"
हम कहते है, I believe (विश्वास होना) Trivikram!
लेकिन वो faith (विश्वास) होना चाहिए! और उसके बाद उसका conviction (ठाम मत, खात्री, भरोसा) यहीं होगा, "एक विश्वास असावा पुरता"
ये विश्वास, अर्थात 'दृढ विश्वास'
यह 'गदा स्तोत्र' हमारी रक्षा करेगा। हमारे बच्चों का भी काम करेगा। बच्चा सोने के बाद उसके सर पर हाथ रखकर यह स्तोत्र बोलने से 'स्तोत्र' काम करेगा!
बच्चों के मन में विश्वास नहीं होगा, फिर भी यह स्तोत्र काम करेगा ही!
अब हम सब यह स्तोत्र शुरू करेंगे!
हरि ॐ अथ श्रीशिवगंगागौरी - गदास्तोत्रम् ।
अगर संस्कृत बोलने नहीं आता, तो भी उसे संभालने कि जिम्मेदारी मेरी होगी! मैंने हर बार वचन दिया है तो मैं वो कभी भी नहीं तोडुँगा।
इस स्तोत्र की सहायता से जिस ब्रम्हास्त्र विद्या को ग्रहण किया है; मेरी तपश्चर्या में! उसे आज मैं सबके लिये दे रहा हूँ।
और वो साक्षात शिवगंगागौरी है! और ये स्तोत्र कहने से वो हमारी जिंदगी में काम करेगा।
अब इस वर्ष में श्रावण महिने में प्रपत्ती होगी, 'श्री महादुर्गेश्वर प्रपत्ती'
चारों ही सोमवार में कर सकते है! अकेले कर सकते है। लेकिन ज्यादा संघ होगा तो और अच्छा होगा। पुरुषों को जो भी कार्य करने पडते है, उसे पुरी ताकत के साथ करने के लिए ये प्रपत्ती बनायी गयी है। पुरुष को भाई, पती, भक्त, देशभक्त; के रुप में कार्य करने के लिये सशक्त हो, वो ताकत मिले, इसलिये यह प्रपत्ती है।
औरतों के लिए एक दिन और पुरुषों के पास चार दिन!
Biological reason..(जीवशास्त्रीय वजह) औरतों के पास एक महिने में एक बीज होता है और पुरुष के पास बीज का समुह होता है; इसलिये!
Weak (कमजोर) नहीं, सशक्त बनने के लिये!
अब इसमें क्या करना है??
1) आसान है:- चौरंग पर
चण्डिका कुल कि तसबीर
रखनी है।
2) उसके सामने त्रिविक्रम या
उसकी तसबीर रखिये।
3) उसके साथ आप किसी
भी देव की मुर्ती या
तसबीर रखना चाहते है, तो
जरुर रखें
4) उसके सामने, आपके
right side (दाहिने,
उजव्या) ओर में नारियल
और left (बाँयी ओर)
side में खाने का पान
(विडा) और एक सुपारी
रखो!
एक इन्सान हो या 100;
तैयारी ऐसी ही रहेगी!
5) उसके सामने दीप और
अगरबत्ती रखें!
6) औरतों के पास एक तबक
होता है, वैसे एक तबक ये
👇🏼साहित्य होना चाहिये:-
. 1) गन्ना
. 2) दो निंबू
. 3) काकडी (खिरा, ककुंबर)
. 4) गाजर (carrot)
. 5) केला
. 6) वाटी (कटोरे) में पंचामृत
. 7) सफेद और पिले फुल
उसके बाद उसके
सामने बैठकर
. 8) पहले पाँच बार श्री
गुरुक्षेत्रम् मंत्र का जाप
करेंगे
. 9) अवधुत चिंतन उत्सव में
जो द्वादश ज्योतीर्लिंग
की आरती होती थी, वह
आरती सबके लिये
उपलब्ध होगी।
.10) आरती के बाद 12
प्रदक्षिणा (परिक्रमा)
करेंगे।
और उस समय "बम बम भोलेनाथ, बम बम भोले" यह गजर करना है
.11) उसके बाद फुल अर्पण
करें।
.12) पुजा उठाने के लिये सब
आसान है! वो केला, सब
में बाँट सकते है।
अगर सौ लोगों में से परिक्रमा करते समय 10 के साथ वो गजर करना है!
.13) और श्री गुरुक्षेत्रम् मंत्र
बोलने के बाद 'माहात्म्य
कथा' पठन करनी है।
यह कथा पढने से ही
ताकत बढनी, शुरू होती
है। ये 'बल कथा' है।
यह बहुत ही सुंदर होती
है। वो कथा; मराठी,
हिन्दी, इंग्लिश और
संस्कृत में पढ सकते है।
औरतें भी ये कथा पढ सकती है! उसका लाभ अपने पिता, भाई, बेटे को जरुर होगा।
मेरे पुत्रों, बडे प्यार से करना!
अगर पाँच जन नहीं मिले यह करने के लिये; अकेले हो, तो समझ जाना कि, मेरे साथ मेरा बाप है! डरो मत!
अगर इस सामग्री में एक चीज नहीं मिली तो फिकीर मत करना! ढुँढो, तो बडे प्यार से कहना, "बापू अॅडजस्ट करना" तो मैं जरुर सुनुँगा।
अगर गलती से नहीं मिला, तो चलेगा।
ये "बम बम भोलेनाथ, बम बम भोले" क्या है?
यह ब्रम्ह बीज है; बृहद् का, विकास का! बल का भी बीज है और बुध्दी का भी बीज है!
एक ही बीज में सब आते है। Basically (मुल रुप से) 'ब' ये पुरुष बीज है! 'अ' स्त्रियों का बीज है! और 'ब' बीज भगवान के अनुग्रह का बीज है।
महिलाएँ भी ये "बम बम भोलेनाथ" का जाप कर सकती है! तो ये अनुग्रह हमारे लिये जल्दी प्राप्त होता है
ये 'बम' बीज महत्वपुर्ण है! उसकी 'शास्ता' ये शिवगंगागौरी है।
आज हमे गदा स्तोत्र मिला!
बम बम भोले नाथ..ये मिला!
मन में बोलना शुरू तो करो! स्त्री को भी अनुग्रह मिलेगा और उसको खुद की सुरक्षा करने की ताकत मिलेगी! वो ताकत भगवान देने ही वाले है।
अब तिसरी चीज, यह जो श्री शब्द ध्यान योग चलता है! उसमें हम एकाग्र चित्त नहीं होते! हम घर पर भी करते है। इसलिये मैने ये प्रदक्षिणा (परिक्रमा) को सीधा किया है। ये एक रेकॉर्ड है, वो शुरू होगा! श्री शब्द ध्यान में मातृ वाक्य के बाद!!
शब्दांकन
मिलिंदसिंह फणसे
हम सब अंबज्ञ है।
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