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Friday, March 24, 2017

23/03/2017 बापूं चे पितृवचन

हरि ॐ दि. 23/03/2017
बापूं चे पितृवचन

हम लोग श्री पंचमुख हनुमंत कवच देख रहे है। हम लोगों ने *क्रैम् अस्त्राय फट्* देखा। अब थोडा आगे जाते है।

पहले हमें जानना चाहिए कि जो शब्दश: अर्थ ब्लॉग पर है! मुझे संस्कृत नहीं आती। हमें उसका जो अर्थ जानना है, जिसका अर्थ होना चाहिए! हमें माँ, आई इन शब्दों की definition (व्याख्या) चाहिए क्या?

हम स्कुल में जाते है। पहले Alphabets सिखते है! वो हमें प्रापंचिक और परमार्थिक लेवल में काम आयेगा।
जब माँ जगदंबा ने तीन पुत्रों को जनम दिया! ब्रम्हा जब सृष्टी बना रहे थे, तो माँ भी कुछ अपने लेवल पर काम कर रही थी। उस वक्त प्रजापती ब्रम्हा ने रज, सुक्ष्म, तम गुण से ही ये सृष्टी बनाई है। ये पंचमहाभुत से बनी है। हवा से लेकर सब elements (तत्व) है; वो पंच महाभुत से ही बने है! वैसे ही माँ ने एक अनोखा exp. (प्रयोग) करना शुरू किया। माँ के नाम अनेक है! पर माँ कि पुजा में ललिता सहस्त्र नाम, श्रेष्ठ जाना जाता है। माँ के रुप, नाम, उसके मार्ग, वाहन, इच्छाएँ सब अनंत है। माँ के बच्चे भी अनंत है। कल्पों के बाद, युग आरंभ होने के बाद उसके बच्चे भी अनंत है।

तो उसने देखा कि उसका पुत्र सृष्टी बना रहा है! और जब उसने मानव कि बुध्दी का विकास करते देखा; तो माँ ने सोचा कि "मेरे पास मेरा जो ज्ञान रुप है, वो बच्चों के पास किसी भी medium (माध्यम) से जाना चाहिये" इसलिये उनको मुझे सही रुप से expert बनाना है! तभी श्रीविद्या ने उसके पुत्र त्रिविक्रम को जन्म दिया।

कितने लोगों ने श्री अवधुत चिंतन में दत्तगुरू के 24 गुरुओं की प्रदक्षिणा के बाद; क्या लेना है, क्या फेंकना है; ये देखने के लिये त्रिविक्रम का साथ लिया! उसने उसके अनंतत्व को माँ में कुछ गृप कि तरह...
जैसे
1) नाम
2) गुण
3) क्रिया
4) क्रिया करने का मार्ग
5) रुप

अनंत =1000 गुण थे! तो माँ ने उसको 100 ऐसा 10 गृप बनाया! उसके नाम 1000 है। ऐसे 100 के 10 गृप बनाये! उसने सब को बताया। त्रिविक्रम ने पुछा! तो उसने कहा, कि ये क्यूँ कर रही हो! मेरे लिए!
ऐसे हर एक का various  combinations (अलग अलग तालमेल) का गृप माँ ने बनाया! ऐसा अलग गृप बनाने के पिछे माँ का intention (हेतू) था; इससे ज्ञान प्राप्ती का मार्ग यानी विद्या बनें! उससे सब 'विज्ञान' बने। ये सब बढते चले गये, तो वो भी अनंत बन गए!

माँ ने कहा, कि "ये मेरा प्यार है तुम पर, इसलिये किया" लेकिन आगे कुछ कहा नहीं! तो त्रिविक्रम प्रेम से माँ के मुख को देखता रहा! माँ ने अपना कार्य शुरू रखा। ये सारे विज्ञान (अनंत सायन्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री) से अलग किया! मायक्रो सायन्स को अलग किया! और सुक्ष्म से सुक्ष्म अलग किया।

विज्ञान = फिजिक्स.. और ज्ञान = मेटा सायन्स..
और अल्टीमेट.. माँ के ज्ञान के लिये प्रजापती ब्रम्हा ने 'दशदिशा' को बनाया और देखा, कि इन्सान का प्रवास, इन दस दिशाओं से ही होता रहे! और अध्यात्म में भी यही 10 दिशाओं से होगा। महर्षी और मानव यानी हर सामान्य मानव के लिए; वो जो भी कुछ विद्या सिखना चाहता है, तो सबके लिए same std (एक ही दर्जा) रखा।

मतलब, माँ और उसका पुत्र; जितना एक महर्षी को देते है! वो ही 'महत्व' छोटे बच्चे के लिये भी same level रखते है। उस प्रगती का भी माँ के लिए इतना ही महत्व है।

खुद को 'फालतू' ना समझें! अगर मै माँ को मानता हूँ तो वो हमें फालतू होने ही नहीं देती।

इसको दशमहा विद्या कहते है! और ये दशमहा विद्या, तांत्रिक भी इस्तेमाल करते है। ये पवित्र भी है! पर वो हमें इस्तेमाल नहीं करनी! यह दशमहा विद्या माँ का 'कार्य सिखाने वाला विद्या रुप' है। तो ये 'दशमहा विद्या' बहुत प्रचलित है! और इसे तांत्रिक ने सब गलत फैलाया है। लेकिन इसका कुछ, इससे 'लेना-देना' है। देवता भी अलग है।

इनके नाम क्या है?

01) *काली विद्या*

02) *तारिणी विद्या*

03) *त्रिपुर भैरवी* (एक ब्रम्हर्षी बनने के अंतिम पल में जो 'शक्ती' इस्तेमाल करनी पडती है! उसको, 'ये शक्ती' कहते है। इसे इस्तेमाल करने जाओ, तो तकलीफ होगी)

04) *महात्रिपुर सुंदर*

05) *भुवनेश्वरी* (इस पुरे विश्व में जगह, आकाश है! उसको 'माँ भुवनेश्वरी' कहते है। अपने दिल, ज्ञान, भक्ती का proper (सही) विकास करना है, तो ये space create करती है)

06) *माँ चिन्नमस्त* (चिन्न - कटा हुवा! माँ ने खुद का ही सर काटा है! और हाथ में रखा है और वहाँ से तीन रक्त प्रवाह चलते है। एक उसके खुद के मुख में और दो उसकी सहाय्यी के मुख में! संसार का पाश तोडने के लिये, विरक्त होना है। उसके लिये ये उपासना है! और हमको मोक्ष पाना है। उसके लिए, ये उपासना है)

ये त्रिपुरभैरवी और चिन्नमस्त, जो ब्रम्हर्षी के last stage (आखरी चरण) में करते है।

07) *धुमावती* (बुढ्ढी औरत उसके कंधे पे कौवा... मोक्ष पाने के बाद आनेवाली स्थिती)
इन तीनों को हम दुर रखेंगे! उनसे हमारा काम नहीं है।

08) *माँ वलगा...माँ पितम्बना* (ये, माँ शिवगंगा गौरी जैसे है। अगर आपके लिये कोई गलत व्रत कर रहे है, उसका स्तंभन करती है। उसका नाश करने के लिये, कुविद्या का स्तंभन करती है) माँ बगलामुखी, का विराट रुप... माँ शिव गंगा!
वलगा = चाबुक

09) *माँ मातंगी* (सरस्वती जैसे दिखती है! पर ये निलवर्ण की है। ये हम, सिक्रेट जानना चाहते है; वो मार्ग दिखाने वाली माँ)

10) *कमलात्मिका* (अपनी लक्ष्मी माँ के आठ रुप मिलकर ये माँ बनती है! और अपने सारे वैभव, को टिकाने वाली है।

ये सारे रुप बनाने के बाद फिर से पुछा! तो त्रिविक्रम ने वो नहीं देखा और वो उसे देखता ही रहा! और बाद में उसने कहा, कि "तेरे विचार करते ही ये सारे रुप तेरी आँखों में देखे है! पर तू, ये मेरा मुख क्यूँ देख रहा है?" मेरे मन में एक विचार आया है, कि 'ये सब मानव को कठिन है' पर वो माँ को 'माँ' मानकर ही चलता है! उसके लिये मेरे कुंडलिनी स्वरुप का एक स्वरुप है! वो ही काफी है। तो ये सब हनुमान को देखते ही होनेवाला है।
तो माँ ने कहा, कि तू इसका सखोल ज्ञान देनेवाला कवच बनाएगा! और पंचमुख हनुमत कवच ऐसे मेरे पाँच मुख तेरे सामने है।

तब त्रिविक्रम ने ये पंचमुख हनुमन्त कवच कि निर्मिती कर दी। उन 10 मार्ग का सब कुछ इस कवच में है। अगर हम ये अर्थ नहीं जानते हुए भी सिर्फ पठण करने से ही ये सारे दस मार्ग खुल जाते है।

एक मुख माँ के नाम का प्रतिनिधित्व करता है।
दुसरा मुख माँ के रुप का
तिसरा मुख माँ के गुण
चौथा मुख माँ के क्रिया
पाँचवा मुख माँ के क्रिया करने का मार्ग बताता है।

और ये सारे पठण के बाद, हमारे लिए सारे अच्छे काम के लिये, ये सारे मार्ग खुल जाते है। पंचमुख कवच के नित्य पठण करने से उस पंचमुख हनुमन्त के दस हाथों से दस मार्ग यानी दस शस्त्रों को अपने सर पर पटक देता है। सर नहीं फुटेगा! पर हमें जो चाहिए, वो मिलेगा।

पंचमुख कवच पढते रहो! दस मार्ग, खुलते रहेंगे! और पठण करो! और नये दस मार्ग खुलेंगे! और जो ये पठण करता है; उसके लिए दस मार्ग कम से कम तो खुले ही रहेंगे!

पुरे विश्व के कार्य कोष, पुरी सृष्टी के लिए चाहिये वो सब इस कवच में है। आपके लिए जो technique (तंत्र) आवश्यक है! जो पंचमहाभुत आवश्यक है; वो सप्लाय करने वाला 'कवच' है।

जब त्रिविक्रम ने हनुमान को बडा भाई मानकर कवच पुर्ण किया तो माँ के दोनो रुप एकत्र हुए! और माँ का 18 हाथों का रुप दिखने लगा।

आज से कभी भी खुद को कम नहीं समझना! खुदकुशी करने का सोचना भी नहीं! पर अपने लिए दस नये मार्ग खुले रहेंगे ही! इसमें दशमहा विद्या का ज्ञान है! चार वेदों का ज्ञान है! यानी सब कुछ इसमें है।

अगले गुरुवार, आखरी पाँच लाईन (पंक्तियाँ) देखेंगे! और जानेंगे कि ये कवच क्या देता है! कभी भी लाचार feel (महसुस) किया, तो ये कवच बोलना! और दस नये मार्ग खुलते रहेंगे!

*ॐ श्री पंचमुख हनुमन्ताय
आंजनेयाय नमो नम:* (5 बार)

मिलिंदसिंह फणसे
हम सब अंबज्ञ है!

Thursday, March 16, 2017

16/03/2017 बापूंचे पितृवचन

हरि ॐ दि. 16/03/2017
बापूंचे पितृवचन

ह्या कवचामधे एक शब्द येतो. *श्री पंचमुख हनुमत विराट हनुमान देवता* विराट याने क्या?

विराट का मतलब क्या है! 'विराट' ये उपाधी; किसलिये और कहाँ दी जाती है?

विराट याने ऐसी कोई चीज, जितनी चाहें, खुद चाहें, स्वयं कि इच्छा से; जितनी चाहें, उतनी बढ सकती है! और किस दिशा में बढे य़ा ना बढे; ये भी उसकी स्वयं कि मर्जी से होता है!

इसलिये विराट को दिशा का; सीमा का बंधन नहीं होता!

जिसकी खुद अपनी सीमा होती है, वो 'विराट' होता है।

वो भी कैसी! कोई भी बुराई कभी विराट नहीं हो सकती! *राज* तो माँ चण्डिका का ही चलता है।

जो विराट है, वो सिर्फ 'पवित्र' ही होता है। जो पुर्ण रुप से, निष्कंलक रुप से पवित्र होता है!

ॐकार को जन्म देते समय, जो ताकत होती है; वो प्रसुती के लिये वास्तव में लायी जाती है। वो विराट नहीं कही जाती!

इस विश्व के उत्पन्न के लिये जितनी शक्ती आवश्यक होती है! उसके बाद जो रह जाती है; वह 'विराट' है! चाहें जितने विश्व और भी उत्पन्न कर सकती है।

यह पंचमुख हनुमान विराट है। याने इनका स्वरुप कैसा है! माँ कि वो शक्ती; जो सारे विश्व उत्पन्न कर के भी, रहती है!

ये विराट शक्ती, विश्व चलाने के लिये; संपुर्ण रुप से हर पल कार्यरत है।

माँ कि जो शक्ती विश्व में आ गयी, वो आ गयी है! गाडी बन गयी है! लेकिन उड चलने के लिये जो इंधन है;

हनुमान जी सारे के सारे विश्व को पॉवर सप्लाय करते है। इसलिये विराट कहा गया है।

ॐ श्री हनुमन्ताय
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपिस तिहूँ लोक उजागर

तिनो लोक! उसे प्रेरित करने वाली शक्ती विराट है।

जिनका विराट स्वरुप है; फिर भी हाथ जोडकर बैठे है! याने 'हमें हमेशा नतमस्तक होना चाहिए! मेरे जीवन का हर पल भगवान का है! ये हर रोज भगवान को बताना चाहिए! कम से कम 'दो बार'

हम जब भी भगवान को बोलते है! याने हममें जो भगवान का अंश है, उसे बताते है। हमारा मन जो है, वो बहुत चंचल होता है।

हम कुछ सोचते है! और दो मिनट में भुल जातें है। हमारी याददाश्त इतनी कमजोर होने का कारण! हमारा मन चंचल है।

इसलिए हमें बार बार बताते रहना है।

सुंदरकाण्ड कम से कम *साल में एक बार तो पढिये*

वहाँ क्या सिख पाते है! रामचंद्र और सीता, हनुमान जी को 'तात' बोलते है।

जो घर में श्रेष्ठ व्यक्ती है; उसे 'तात' कहते है।

ये परमात्मा भी उसे 'तात' कहते है! इतना वो विराट है। जब भगवान का स्वरुप, *अवतार* हो जाता है; तो वो भगवान का स्वरुप हमेशा कार्यरत होता है।

त्रिविक्रम 'कारणरुप' होता है!

राम, कृष्ण अपने मुल रुप में विराट है ही! लेकिन वसुंधरा पर कुछ कारण से आते है।

त्रिविक्रम और हनुमान जी; किसी रुप या अवतार में भी आयें; तो भी विराट ही रहते है

उनका कार्य भी विराट ही है। ये हनुमान जी, जब हनुमान के रुप में प्रगट हुए।

ये *सतयुग में भी* आता है! त्रेता, द्वापार में भी आता है! कलयुग में तो *है ही!*

वो पंचमुख हनुमान ही है! उनका विराट रुप, हमारे आकलन शक्ती के बस में होता है!

इस कवच को दिव्यता देनेवाला 'विराट हनुमान' है

पंचमुख याने *हर व्यक्ती के पंचप्राण, पंचेंद्रिय, कर्मेंद्रिय* इन सभी को सामर्थ्य देनेवाले है!

गलत सामर्थ्य नहीं, आपके लिये जितना आवश्यक है? उतना ही देनेवाला है।

किस दिशा में उसका बंधन नहीं है।

ये सबसे सुरक्षित है! हमारा बाळ, अगर गलत दिशा में गया, तो प्रॉब्लेम हो सकता है! गलत नहीं बन सकते! वो *विराट तत्व है*

ये विराटता, हमारे लिए वरदान बन के आती है। किसी भी इन्सान को; जो वरदान आता है; वो अगर शुध्द भक्ती या तपश्चर्या के लिए आया; तो उसमें अंतर होता है।

शुध्द भक्ती के लिये आते है, वो हनुमान जी का अंश होता है!

राम दुआरें, तुम रखवारें

परमात्मा का कौनसा भी अवतार क्यों ना हो! हर इन्सान तक पहुँचनेवाला कार्य, हनुमान करते है! इसलिए विराट है!

संरक्षण करनेवाला! माँ के गर्भ में होता है, वैसा! सारी बुराईयों से संरक्षण! और सारा भरण पोषण!

वो कवच!

इसलिय़े हनुमान जी को *विश्व योगिराज* भी कहते है।

हम पंचमुख हनुमान जी का कवच कहते है।

-हीं बीजं
याने इस कवच का बीज जो है, वो '-हीं' याने माँ का प्रणव! ये लज्जा बीज है।

ॐकार का जो महत्व है, वो ही इस -हीं का महत्व

लज्जा बीज याने ये गुढ बीज है। सारे Secrets of the World गुप्त वार्ता, तंत्र याने Techniques, सारे समिकरण, सुत्र जिसमें है वो ये '-हीं बीज'

इस कवच का बीज भी -हीं है! जिस कवच का बीज ही -हीम् है वो हमारे लिए क्या कुछ नहीं कर सकता!

क्रैम् अस्त्राय फट्
इति दिग्बंध:

ये *दिग्बंध*
ये *फट्* भी बीज मंत्र है। 'फट्' जो है, किसी भी चीज का तुरंत त्याग करने के लिए, विनाश करने के लिए जो आवाहन किया जाता है, उसका बीज है 'फट्'
ये विनाशकारी बीज है! स्वेच्छा के अनुसार है। जिनको मारना है; वो ही मरेंगे!

ये विध्वंसक शक्ती भी हनुमान जी को Specific है! Apt है!

अस्त्राय फट् इति दिग्बंध:
किसी का अस्त्र हम पर आने से पहले उसका विनाश हो!

अगर हम किसी गलत रास्ते पर जायें, तो उसका भी विनाश हो!

हम हमारे खुद के जीवन में झाँकेंगे, तो देखेंगे... हम गुस्से में कितने गलत शब्द बोल देते है!

ये जो हम हमारे जिंदगी में गलत कदम उठाते है; ये गलत अस्त्र भी! जो हमारी वजह से 'निकलता' है! उसके भी 'निकलने के' तुरंत बाद नाश हो जाए! यही दिग्बंध है इस कवच का! याने *आपको पवित्र सीमा में ही रखने वाला*

जो चाहता है, मेरे हाथ से गलती ना हो; तो *क्रैम् अस्त्राय फट् स्वाहा* आवश्यक है।

क्रैम् बीज जो है, इसे युध्द बीज कहते है। हमारे मन में खुद के साथ युध्द चलता है! घर में भी! सारे युध्दों का बीज क्रैम् है। ये युध्द बीज है!
लेकिन, किसी भी युध्द में जो सच्चे श्रध्दावान है, उनका संरक्षण करने वाला ये बीज है। ये प्रगट कैसे हुवा?
इंद्र वृत्रासुर का युध्द! वृत्रासुर का पहली बार जाना हुवा और पहला युध्द हुवा। माँ चण्डिका के मुख से जो आशिर्वाद निकला इंद्र के लिए! वो था *क्रैम्*

जो पवित्र है, जो माँ का है, जो भक्तिमान है, जो अच्छा बनना है; उसके लिए क्रैम् बीज है। इसका इस्तेमाल कोई भी नहीं कर सकता!

हमारे शत्रुओं को पराभूत करता है।

श्री गरुड उवाच।
अथ ध्यानम् प्रवक्ष्यामि॥
श्रृणू सर्वांग सुंदर॥

गरुड जी बोल रहे है! किस को बोल रहे है! ये 'सर्वांग सुंदर' कौन है?

गरुड अमृत कुंभ लेकर आता है।
वो हमारे लिए भी अमृत लेकर आयेगा ही!

ऐसा गरुड! किसे बता रहा है? सर्वांग सुंदर कौन है? जो हनुमान जी को प्रिय है!

सर्वांग सुंदर याने त्रिविक्रम है! ये त्रिविक्रम का नाम है।
गरुड जी को गर्व होता है! उसका हरण करने के लिए!

मेरू पर्वत

शिव शक्ती का, एक दुसरे पर जो प्यार है; वो त्रिविक्रम के रुप में है। पर हनुमान जी अरुध्द है! उनका दर्शन कर के गरुड जी आते है।

सर्वांग सुंदर प्रेम ही होता है! गरुड जी, त्रिविक्रम जी को बताते है! सारे सामान्य भक्तों को समझ सकें इसलिए!

यत्कृतं देवदेवेन।  देवों के देव जो है! याने त्रिविक्रम को ही कहते है! जिसने यह स्तोत्र रचा है! उसी को फिर से ये स्तोत्र गरुड जी बता रहे है!

त्रिविक्रम जी 'बाल रुप' में बैठे थे!

जब तक हम 'छोटा रुप' पाते नहीं!

मसक समान रुप कपि धरिही

त्रिविक्रम जी ने श्रावण बाळ रुप में किया। हमें भी बाल भाव से ही करना चाहिए, तो ही ये 'फलेगा'

मेरू पर्वत पे ही बाल त्रिविक्रम को बताता है! गरुड को पता है; जिससे सुन के आ रहा हूँ, जिसे सुना रहा हूँ! वो त्रिविक्रम ही है!

जिस हनुमान जी की मै प्रार्थना कर रहा हूँ वो मेरे अधिदैवत भी है! उसके साथ साथ वो मेरे अंदर भी खेल रहे है। हर जिवित या अजिवित पदार्थ में महाप्राण ही है। उस महाप्राण को भी वो सामर्थ्य देंगे। वो हर एक के बदन में है ही!

पंचवक्त्रं महाभीमं।

ये पाँच मुख जिसके है! 15 नयन है जिसके! हनुमान जी को भी 3 आँखे है!
ये सर्वकामार्थ सिध्दिदम् है। सर्व प्रकार के पुरुषार्थ, सिध्द करनेवाला है।
हनुमान जी के हर मुख का तिसरा नयन है। हनुमान जी का दिखाया नहीं जाता! क्योंकी हनुमान जी रहते कहाँ है? आज्ञा चक्र में! तिसरी आँख कि जगह आज्ञा चक्र ही है। आज्ञा चक्र ही 'तिसरी आँख' है।हम जिसे Sixth Sense (छटवी इंद्री) कहते है।

तिसरी आँख... सब कुछ जान लेती है। ऐसी आँख हनुमान जी की है।

इस कवच का पठण करते समय या करने के बाद उसके मन की पुरी कि पुरी जानकारी, हनुमान जी को हो जाती है।

हनुमान जी का तिसरा नयन है। हमारे आज्ञा चक्र के साथ direct contact (सीधे संपर्क) करनेवाला है। हमारे आज्ञा चक्र के हनुमान का कनेक्शन बाहर के 'विराट' हनुमान से जुङ जायेगा। याने *अनलिमिटेड कनेक्शन सप्लाय* Free of Cost उसके लिये तुम्हारा मन हनुमान जी के लिये खुला करना पडेगा।
माँ के द्वार बंद नहीं है! हमारे दिल के दरवाजे बंद होते है। एकनाथ जी कहते है, "बये दार उघड"
माँ तू खोल दे! इस स्तोत्र के पठण करने के बाद हमारे दिल के दरवाजे, हनुमान जी खोल के ही रहेंगे!
ये तिसरा नयन, अभी यहाँ पाँच मुख है तो 15 नयन! 5 पंच ज्ञान चक्षू! याने हमारे पाँच कोष जो है! याने, हमारा *समग्र अस्तित्व* हमारे शरीर से लेकर अंत:करण चतुष्ठ! इसके दरवाजे खोलने से... हमारे पंचकोष... एक एक कोष का ये एक एक 'मुख स्वामी' है।
हनुमान जी को बोले, जो अस्त्र फेंकना चाहे वो फेंके और तोड दे मेरे दरवाजे को! तो उनका एक एक मुख; एक एक कोष का काबू लेनेवाली है! और जीवन में जब हनुमान जी राज करते है; तभी *रामराज्य* आता है।

हमारे जिंदगी में रामराज लाने का *ये सिक्रेट है*

तो ये हनुमान कवच प्यार से पढें! आप count (गिनती) भी मत करना! करते रहो, जितना हो सकें!

ये कवच जो 'नित्य पठण' करता है, उसके जीवन के अंतिम पल में 'Last पल में भी हमें हमारे सदगुरू की, हमारे 'दादी' की याद रहेगी! इसका 108% भरोसा, ये कवच देता है। हमारे सोते हुए भी, हमारे सपनों के राज में भी; 'राज' हनुमान जी का चलेगा।

जिनको भी डरावने सपने आते है, वो *पंचमुख हनुमान कवच* कहें!
अपने आप बंद हो जायेंगे! मेरे दिल के दरवाजे हनुमान जी के लिये खुलने ही चाहिए।
आपने कितना भी घृणास्पद कृत्य क्यूं ना किया हो; हनुमान जी आपको अपना बच्चा ही कहेंगे!

बाल रुप क्यों लिया है, त्रिविक्रम ने? क्यों की यह पठण करनेवाला, उनका बच्चा ही हो!

*आवो स्वामी, मेरे पंचकोषों का स्वामित्व* आपको अर्पण किया है! और अगर मन से नहीं किया, तो आप तोड के आ जाओ!

पुरी जिंदगी ऐसे हँसते हँसते चली जायेगी!

मिलिंदसिंह फणसे
हम सभी अंबज्ञ है!

16/03/17 Hariom

16/03/17
Hariom.. 
Shri ram 
Ambadnya..

Hya kavacha mdhe ek shbd yeto..

Shri pancha mukh hanumat virat hanuman devata. .virat yane kya.  

Virat ka matlab kya hai.. virat ye upadhi kisliye aur kaha di jaati hai .

Virat yaane aisi koi chij.. jitni chaahe..khud chaahe.. swayam ki ichha se.. jitna chahe utna badh skti hai...aur kis disha me badhe ya na badhe ye bhi uske swayam k marji se hota hai..

Isliye virat ko disha...ka..seema ka bandhan nhi hota hai..

Jiski khud apni seeka hai..wo virat hota hai.. 

Wo bhi kaisi.. koi bhi burai kbhi virat nhi ho sakti.. raaj toh maa chandika ka hi chalta hai .. 

Jo virat hai..wo sirf paVitra hi hota hai.. jo purna rup se nishkalank rup se pavitra hita hai..wohi virat hota hai..

Onkar ko jnma dete samay...jo taakad hoti hai.... Wo prasuti ke liye vastav me laayi jaati hai.. wo virat nhi kahi jaati.. 

Is vishva ke utpanna k liye jitiNi shkti avshyk hoti hai..uske baad jo reh jaato hai.. wo virat hai.. chahe jitne vishva aur bhi utpana kar sakti hai..

Ye panchmukh hanuman virat ahi. Yaane inka swarup kaisa hai.. maa ko wo shkti...jo saare vishv utpanna krke bui rehti hai.. 

Ye virat shkti..vishv Chalane ke liye.. sampurn rup se har pal karyarat hai.. 

Maa ki jo shkti vishv me aa gayi.. wo aa gayi hai... gaadi ban gayi hai..lekin ude chalane k liye jo indhan hai.. wo

Hanuman ji saare ke saarw vishv ko power supply krte hai..isliye virat kaha gaya hai..

Om shri hanumantaya.. 
Durgam kaaj jagat k jete..

Sugam anugrah tumhare tete. 

Jai hanuman gyaan gun sagar..

Jai kapis tihu lok ujaagar..

Tino lok... Use prerit karne wali shkti viraat hai.. 

Jinka virat swarup hai..fir bhi haat jodkar baithe hai... Yaane hame hamesha natamastak hona chahiye..  mere jivan Ka.. har pal bhagwan ka hai...ye har roj bhagwan ko batana chahiye..kam se kam 2 baar..

 hum jb bhagwan ko bolte hai..yaane hamare me jo bhgwan ka ansh hai..ude batate hai..hamara man jo hai wo bahut chanchal hota hai.  

Hum kuch sochte hai..aur 2 min me bhul jaate hai.. hamari yaadash itni kamjor hone ka karan..humara man chanchal ahi..

Isliye hame barbar batate rehna hai. 

Sunderkand kam se kam saal me 1 baar toh padhiye.. 

Waha kya sikh paate hai..raamchandra aur sita..hanuman ji ko taat bolte hai.  

Jo ghar me shreshta vykti hai.use taat kehte hai. 

Ye parmatma bhi use taat kehta hai. itna wo virat hai..  jb bhagwan ka swarup avtaar ho jaata hai..to wo bhgwan ka swarup hamesha karyarat hota hai.  

Trivikram karanrup hota hai.. 

Raam.. krishna..apne mul rup me virat hai hi. lekin vasundhra pr kuch karan se aate hai.. 

Trivikram aur hanuman ji kisi rup ya avtar me bhi aaye toh bhi virat hi rehte hai.. 

Unka kaarya bhi viraat hi hai..

Ye hanuman ji jab hanjman k rup me pragat huye... 

Ye satyayug me bhi aata hai.. treta dwapr ne bhi aata ahi..kaliyug me tih hai hi.. 

Wo panchmukh hanuman ho hai..unka virat hamare aakalan shkti ke bas me hoti hai..

Is kavach ko divyata denewala.. virat hanuman hai..

Panchmukh yaane..har vykti ke panchpran.. panchendriya karmendriya.. in sabhi Ko samarthya denewale hai.. 

Galat samrthya nhi. Aapke liye jitna avshyk utna hi denewala hai.. 

Kis disha me uska bandhan nhi hai..

Ye sabse safe hai..hamara bal agar galat disha me gaya toh pblm ho sakta hai.. galat nhi ban sakte..wo virat tatv hai.. 

Ye viratata hamare liye.. vardan banke aati hai.. kisi bhi insan ko...jo vardan aata hai.. wo agar shuddh bhkti ya tapashchrya k liye aaya jo toj usme antar hota hai.. 

Shuddh bhkti k liye aat hai..wo hanuman ji ka ansh hota hai.. 

Raam duaare tum rakhware...

Parmatma ka kaunsa bhi avtar kyi na ho..har insan tak pahunchane wala karya hanuman krte haim..isliye virat hai.n

Sanrakshan krnewala...maa k garbh me hota hai waisa.. sari Buraaiyo se snsrkhsan.. aur saara bharan poshan.. 

Wo kavach.. 

Isliye hanuman ji Ko vishva yogiraj bhi kehete hai.. 

Hum panchmukh hanaumn Ji ka kavavh kehte hai.. 

Rhim Bijam.. 
Yaane..is kavach ka beej jo hai...wo rhim yaane maa ka pranav...ye lajja beej hai..

Onkar ka jo mahtv haim. Wo hi is rhim ka mahatva..

Lajja beej yaane... Ye gudh beej hai..saare secrets of the world..  gupt vaarta.. tantra..yane techniques.. saare samikaran sutra jisme hai.. wo ye rhim beej.. 

Is kavach ka bhi beej rHim hai.. 
Jis kavach ka beej hi rhim.hai.. wo hamare liye kya kuch nhi kar sakta..

Kraim astray fat iti digbandhaha.. 

 Ye digbandha.. 

Ye fat bhi bij mantr hai.. fat jo hai..kisi bhi chij ka turant tyag krne ke liye.  Vinash krne ke liye.. jo avahan kiya jata hai uska bij hai.. fat.. ye vinashkari bij hai.. swechha ke anusar hai.. jinko maarna hai..wo hi marenge.. 

Ye vidhvansak shkti bhi hanuman Ji ko specific hai..apt hai.. 

Astray fat iti digbandhaha. .kisika astra hum par aane se pehle...uska vinash ho... 

Agar hum kisi galat raste pe jaaye toh uska bhi vinash ho..

Hum hamare khud k Jivan me jhaakenge toh..dekhenge.... Hum gusse me kitne galat shbd bol dete hai.. 

Yw jo hum hamare jindagi me galat kadam utjate hai. Ye galat astra bhi..jo hamare vajah se nikalta hai .uska bhi nikalne k turant baad naash ho jaaye.  
Ye Hi digbndha hai is kavach hai.. yaane apko pavitra seema me Hi rakhne wala...

Jo chahata hai..mere haat se galti na ho..to krim astraya fat swaha avshyk hai.. 

Kraim..bij jo hai..ise yuddh bij kehte hai.. hamare man me khud k sath yuddh chalta hai.. ghar me bhi..saare yuddhon ka bij kraim hai.. ye yuddh Bij hau .
Lekin.. kisi bhi yuddh me jo sachhe shradhhavan hai..unka sanrakshan krne wala ye bij hai..
Ye pragat kaise huaa.  
Indra vrutrasur ka yuddh..brutrasur ka pehle baar jana. Hua..aur pehla yuddh hua.. maa chandika ke mukh se jo ashirvad Nikla indra k liye.. wo tha kraim.. 

jo paVitra hai..Jo maa ka hai..jo bhaktimaan hai..jo achha banna hai.. uske liye kraim bij hai..iska istemal koi bhi nhi kar skta hai.. 

Hamare shatruon ko parabhut karta hai..

Shri garud uvaach.. atha dhyanam pravakshyami.. shrunu sarvang sunder..

Garudji bol rahe hai...kisKo bol rahe hai..ye sarvang sunder kaun hai.. 

Garud amrut kumbh leke aata hai.. 

Wo hamare liye bhi amrut leke aayega hi..

Aisa garud..kise bata raha hai.. 

Sarvang sunder kaun hai.. Jo hanuman ji ko priya hai.. 

Sarvang sunder yaane trivikram hai.. ye trivikram ka naam hai.. 

Garud.. Ji ko garv hota hai.. uska haran krne ke liye..

Meru parvat..

 shiv shkti ka ek dusre pr jo pyar hia. Wo trivikram ke rup me hai...par hanumna ji arudh hai...uNka darshn karke garud ji aate hai..

 Sarvang sunder prem hi hota hai.. garud ji trivikram ji ko batate hai. Saare samanya bhakton ko samajh sake isliye.. 

Yatkrutam devdeven.. devon ke dev jo hai...yaane trivikram ko hi..kehte hai.. jisne ye stotra racha hai..usiko fir se ye stotra garud ji bata rahe hai.. 

Trivikram ji baal rup me baithe the..

Jab tak hum chota rup paate nhi.. 

Masak saman rup kapi dharihi.. 

Trivikram ji ne idka shrvan baal rup me kiya..hame bhi baal bhaav se hi karna chahiye to hi ye falega.. 

Meru parvat pe hi..baal trivikram Ko batata hai.. garud ko ptaa hai..jisse sunke aa raha hu..Jise suna raha hu..wo trivikram 

Jis hanuman Ji ki me prarthana karraha hu.. wo mere adHidaivat bhi hai..uske sath sath wo mere andar bhi khel rahe hai.. har jivit ya ajivit padarth me mahapran hi hai.. us mahapran Ko bhi wo samarthya denge.. wo har ek ke badan me hai hi..

Panchvaktram mahabhimam...

Ye panch mukh jiske hai.. 15 nayan hai jiske.. hanumna Ji Ko bHi 3 aankhen hai.. ye sarvakamartha siddhidam hau. 
Sarv prakar ke purusharth siddh karnewala hai..
Hanuman ji k har mukh ka tisra nayan hai.. hanuman ji ka dikhaya nhi jaata.. kyuki hanuman ji rehte hai kaha hai.aagya chkra me.. tisri aakh ki jagah aagya chkra hi hai..aagya chkra ye hi tisri aankh hai.  Hum jise sixth sense kehte hai.  

Tisra aankh..sab kuch jaan leta hai..aisi aankh hanuman ji ki hai.. 

Is kavach ja pathan karte samay ya karne k baad..uske man ki puri ki puri jaankari hanuman ji ko ho jaati hai.. 

Hanuman ji ka tisra nayan hai. Hamare aagya chkra k sath direct contact krne wala hai.. hamare aaGya chkra ke hanjman ka connection bahar k Virat hanumna se jud jaayega..yaane unlimited connection supply.. free of cost.. uske liye tumhara man hanuman ji k liye khula karna padega.. 
Maa k dwaar band nhi hai..hamare dil k darwaje band hote hai.. 
Eknath ji kehte hai..baye daar ughad.. 
Maa tu khol de.. .ye stotra ka pathan karne k naad hamare dil k darvaje hanuman ji khol ke Hi rahenge.. 
Ye tisra nayan..aBHi yaha panchmukh hai toh 15 nayan..
5 ..pancha gyaan chaksHu ..
Yaane hamare panch Kosh jo hai. Yaane hamara samgra astitva.. hamare sharir se lekar antakaran chatushta.. iske darvaje..kholne se...hamare panchkosh.. ek ek Kosh ka ye ek ek mukh swaMi hai.. 
Hanuman ji ko bole..Jo astra fekna chahe wo feke..ayr tod de mere darvaje jo..toh unka ek ek mukh.. ek ek kosh ka kaabu lenewali hai..aur jivan me jab hanuman Ji raaj krte hai..tbhi ramrajya aata hai.. 
Hamare jindagi me ramraj laane ka ye secret hai..

Toh ye hanuman kavach pyar se padhe.. aap count bhi mat karna.. karte raho..jitna ho sake..

Ye kavach jo Nitya pathan karta hai...uske jivan k antim pal me.. last pal.me bhi..hame hamare sadguru ki hamare daadi ki yaad rahegi..iska 108% bharosa ye kavach deta hai...hamare sote hiye bhi..hamare sapnon k raaj me bhi raaj hanuman ji ka chalega.. 

Jinko bhi daravne sapne aate hai..wo panchmukh hanuman kavach kahe
...apne aap band ho jaayege..
Mere dil k darvaje hanuman ji k liye khulne hi chahiye..
Apne kitna bHi ghrunaspad kruty kyu na kiya ho... hanuman Ji apko kbhi raavan nhi kahenge.. apko apna bachha hi kahenge.. 

Baal rup kyu liya hai..trivikram ne.. kyuki ye pthn karnewala unka bachha hi ho..

Aao swami..mere panchkoshon ka swamitva apko aroan kiya hai..aur agar man se nahi kiya. Toh aap todke aa jao...

Puri jindagi aise haste haste chali jaayegi.. 

Hariom.. 

Ambadnya..

Typed by ketakiveera kulkarni..