हरि ॐ दि. 23/03/2017
बापूं चे पितृवचन
हम लोग श्री पंचमुख हनुमंत कवच देख रहे है। हम लोगों ने *क्रैम् अस्त्राय फट्* देखा। अब थोडा आगे जाते है।
पहले हमें जानना चाहिए कि जो शब्दश: अर्थ ब्लॉग पर है! मुझे संस्कृत नहीं आती। हमें उसका जो अर्थ जानना है, जिसका अर्थ होना चाहिए! हमें माँ, आई इन शब्दों की definition (व्याख्या) चाहिए क्या?
हम स्कुल में जाते है। पहले Alphabets सिखते है! वो हमें प्रापंचिक और परमार्थिक लेवल में काम आयेगा।
जब माँ जगदंबा ने तीन पुत्रों को जनम दिया! ब्रम्हा जब सृष्टी बना रहे थे, तो माँ भी कुछ अपने लेवल पर काम कर रही थी। उस वक्त प्रजापती ब्रम्हा ने रज, सुक्ष्म, तम गुण से ही ये सृष्टी बनाई है। ये पंचमहाभुत से बनी है। हवा से लेकर सब elements (तत्व) है; वो पंच महाभुत से ही बने है! वैसे ही माँ ने एक अनोखा exp. (प्रयोग) करना शुरू किया। माँ के नाम अनेक है! पर माँ कि पुजा में ललिता सहस्त्र नाम, श्रेष्ठ जाना जाता है। माँ के रुप, नाम, उसके मार्ग, वाहन, इच्छाएँ सब अनंत है। माँ के बच्चे भी अनंत है। कल्पों के बाद, युग आरंभ होने के बाद उसके बच्चे भी अनंत है।
तो उसने देखा कि उसका पुत्र सृष्टी बना रहा है! और जब उसने मानव कि बुध्दी का विकास करते देखा; तो माँ ने सोचा कि "मेरे पास मेरा जो ज्ञान रुप है, वो बच्चों के पास किसी भी medium (माध्यम) से जाना चाहिये" इसलिये उनको मुझे सही रुप से expert बनाना है! तभी श्रीविद्या ने उसके पुत्र त्रिविक्रम को जन्म दिया।
कितने लोगों ने श्री अवधुत चिंतन में दत्तगुरू के 24 गुरुओं की प्रदक्षिणा के बाद; क्या लेना है, क्या फेंकना है; ये देखने के लिये त्रिविक्रम का साथ लिया! उसने उसके अनंतत्व को माँ में कुछ गृप कि तरह...
जैसे
1) नाम
2) गुण
3) क्रिया
4) क्रिया करने का मार्ग
5) रुप
अनंत =1000 गुण थे! तो माँ ने उसको 100 ऐसा 10 गृप बनाया! उसके नाम 1000 है। ऐसे 100 के 10 गृप बनाये! उसने सब को बताया। त्रिविक्रम ने पुछा! तो उसने कहा, कि ये क्यूँ कर रही हो! मेरे लिए!
ऐसे हर एक का various combinations (अलग अलग तालमेल) का गृप माँ ने बनाया! ऐसा अलग गृप बनाने के पिछे माँ का intention (हेतू) था; इससे ज्ञान प्राप्ती का मार्ग यानी विद्या बनें! उससे सब 'विज्ञान' बने। ये सब बढते चले गये, तो वो भी अनंत बन गए!
माँ ने कहा, कि "ये मेरा प्यार है तुम पर, इसलिये किया" लेकिन आगे कुछ कहा नहीं! तो त्रिविक्रम प्रेम से माँ के मुख को देखता रहा! माँ ने अपना कार्य शुरू रखा। ये सारे विज्ञान (अनंत सायन्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री) से अलग किया! मायक्रो सायन्स को अलग किया! और सुक्ष्म से सुक्ष्म अलग किया।
विज्ञान = फिजिक्स.. और ज्ञान = मेटा सायन्स..
और अल्टीमेट.. माँ के ज्ञान के लिये प्रजापती ब्रम्हा ने 'दशदिशा' को बनाया और देखा, कि इन्सान का प्रवास, इन दस दिशाओं से ही होता रहे! और अध्यात्म में भी यही 10 दिशाओं से होगा। महर्षी और मानव यानी हर सामान्य मानव के लिए; वो जो भी कुछ विद्या सिखना चाहता है, तो सबके लिए same std (एक ही दर्जा) रखा।
मतलब, माँ और उसका पुत्र; जितना एक महर्षी को देते है! वो ही 'महत्व' छोटे बच्चे के लिये भी same level रखते है। उस प्रगती का भी माँ के लिए इतना ही महत्व है।
खुद को 'फालतू' ना समझें! अगर मै माँ को मानता हूँ तो वो हमें फालतू होने ही नहीं देती।
इसको दशमहा विद्या कहते है! और ये दशमहा विद्या, तांत्रिक भी इस्तेमाल करते है। ये पवित्र भी है! पर वो हमें इस्तेमाल नहीं करनी! यह दशमहा विद्या माँ का 'कार्य सिखाने वाला विद्या रुप' है। तो ये 'दशमहा विद्या' बहुत प्रचलित है! और इसे तांत्रिक ने सब गलत फैलाया है। लेकिन इसका कुछ, इससे 'लेना-देना' है। देवता भी अलग है।
इनके नाम क्या है?
01) *काली विद्या*
02) *तारिणी विद्या*
03) *त्रिपुर भैरवी* (एक ब्रम्हर्षी बनने के अंतिम पल में जो 'शक्ती' इस्तेमाल करनी पडती है! उसको, 'ये शक्ती' कहते है। इसे इस्तेमाल करने जाओ, तो तकलीफ होगी)
04) *महात्रिपुर सुंदर*
05) *भुवनेश्वरी* (इस पुरे विश्व में जगह, आकाश है! उसको 'माँ भुवनेश्वरी' कहते है। अपने दिल, ज्ञान, भक्ती का proper (सही) विकास करना है, तो ये space create करती है)
06) *माँ चिन्नमस्त* (चिन्न - कटा हुवा! माँ ने खुद का ही सर काटा है! और हाथ में रखा है और वहाँ से तीन रक्त प्रवाह चलते है। एक उसके खुद के मुख में और दो उसकी सहाय्यी के मुख में! संसार का पाश तोडने के लिये, विरक्त होना है। उसके लिये ये उपासना है! और हमको मोक्ष पाना है। उसके लिए, ये उपासना है)
ये त्रिपुरभैरवी और चिन्नमस्त, जो ब्रम्हर्षी के last stage (आखरी चरण) में करते है।
07) *धुमावती* (बुढ्ढी औरत उसके कंधे पे कौवा... मोक्ष पाने के बाद आनेवाली स्थिती)
इन तीनों को हम दुर रखेंगे! उनसे हमारा काम नहीं है।
08) *माँ वलगा...माँ पितम्बना* (ये, माँ शिवगंगा गौरी जैसे है। अगर आपके लिये कोई गलत व्रत कर रहे है, उसका स्तंभन करती है। उसका नाश करने के लिये, कुविद्या का स्तंभन करती है) माँ बगलामुखी, का विराट रुप... माँ शिव गंगा!
वलगा = चाबुक
09) *माँ मातंगी* (सरस्वती जैसे दिखती है! पर ये निलवर्ण की है। ये हम, सिक्रेट जानना चाहते है; वो मार्ग दिखाने वाली माँ)
10) *कमलात्मिका* (अपनी लक्ष्मी माँ के आठ रुप मिलकर ये माँ बनती है! और अपने सारे वैभव, को टिकाने वाली है।
ये सारे रुप बनाने के बाद फिर से पुछा! तो त्रिविक्रम ने वो नहीं देखा और वो उसे देखता ही रहा! और बाद में उसने कहा, कि "तेरे विचार करते ही ये सारे रुप तेरी आँखों में देखे है! पर तू, ये मेरा मुख क्यूँ देख रहा है?" मेरे मन में एक विचार आया है, कि 'ये सब मानव को कठिन है' पर वो माँ को 'माँ' मानकर ही चलता है! उसके लिये मेरे कुंडलिनी स्वरुप का एक स्वरुप है! वो ही काफी है। तो ये सब हनुमान को देखते ही होनेवाला है।
तो माँ ने कहा, कि तू इसका सखोल ज्ञान देनेवाला कवच बनाएगा! और पंचमुख हनुमत कवच ऐसे मेरे पाँच मुख तेरे सामने है।
तब त्रिविक्रम ने ये पंचमुख हनुमन्त कवच कि निर्मिती कर दी। उन 10 मार्ग का सब कुछ इस कवच में है। अगर हम ये अर्थ नहीं जानते हुए भी सिर्फ पठण करने से ही ये सारे दस मार्ग खुल जाते है।
एक मुख माँ के नाम का प्रतिनिधित्व करता है।
दुसरा मुख माँ के रुप का
तिसरा मुख माँ के गुण
चौथा मुख माँ के क्रिया
पाँचवा मुख माँ के क्रिया करने का मार्ग बताता है।
और ये सारे पठण के बाद, हमारे लिए सारे अच्छे काम के लिये, ये सारे मार्ग खुल जाते है। पंचमुख कवच के नित्य पठण करने से उस पंचमुख हनुमन्त के दस हाथों से दस मार्ग यानी दस शस्त्रों को अपने सर पर पटक देता है। सर नहीं फुटेगा! पर हमें जो चाहिए, वो मिलेगा।
पंचमुख कवच पढते रहो! दस मार्ग, खुलते रहेंगे! और पठण करो! और नये दस मार्ग खुलेंगे! और जो ये पठण करता है; उसके लिए दस मार्ग कम से कम तो खुले ही रहेंगे!
पुरे विश्व के कार्य कोष, पुरी सृष्टी के लिए चाहिये वो सब इस कवच में है। आपके लिए जो technique (तंत्र) आवश्यक है! जो पंचमहाभुत आवश्यक है; वो सप्लाय करने वाला 'कवच' है।
जब त्रिविक्रम ने हनुमान को बडा भाई मानकर कवच पुर्ण किया तो माँ के दोनो रुप एकत्र हुए! और माँ का 18 हाथों का रुप दिखने लगा।
आज से कभी भी खुद को कम नहीं समझना! खुदकुशी करने का सोचना भी नहीं! पर अपने लिए दस नये मार्ग खुले रहेंगे ही! इसमें दशमहा विद्या का ज्ञान है! चार वेदों का ज्ञान है! यानी सब कुछ इसमें है।
अगले गुरुवार, आखरी पाँच लाईन (पंक्तियाँ) देखेंगे! और जानेंगे कि ये कवच क्या देता है! कभी भी लाचार feel (महसुस) किया, तो ये कवच बोलना! और दस नये मार्ग खुलते रहेंगे!
*ॐ श्री पंचमुख हनुमन्ताय
आंजनेयाय नमो नम:* (5 बार)
मिलिंदसिंह फणसे
हम सब अंबज्ञ है!
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