हरि ॐ दि. 07/04/2016
बापूंचे पितृवचन
श्री स्वस्तिक्षेम संवाद! जो भी संवाद करना चाहते हो, अपनी दादी के साथ, चण्डिकाकुल के साथ; कोई भी बात हो! कुछ अच्छा हो, तो वो भी बतायें! पुरे विश्वास के साथ; कि जो मैं मन में बोल रहीं हूँ, वो सुनती है! मन में बोलोगे, तो ही वो सुनेगी!
आप कुछ भी बात कर सकते हो! अगर बात करना नहीं चाहते; तो सिर्फ देखते रहो। मन में उसकी मुर्ती लाकर, बैठ सकते हो; लेकिन ये संवाद है! हमें कुछ सुनाई नहीं देगा, तो संवाद कैसे? उनकी भाषा ही अलग है। उनकी भाषा पवित्र प्रेम... तुम्हारी बुध्दी के साथ, प्राणों के साथ है। प्राणमय संवाद! प्राणों में बात छोडी जाती है। मन में क्यूँ नहीं?
कोई चाहता है, कि मेरा मन बदलो! तो वो नहीं हो सकता। ये Mind Control (मन-नियंत्रित) करना; अपवित्र बात है। मन पर control (नियंत्रण) करोगे, तो कर्मस्वातंत्र्य नहीं हो सकता! अगर राम भगवान, रावण का मन बदल देते, तो बात इतनी बढती हीं नहीं!
माँ भगवती, और उसका बेटा त्रिविक्रम; हमारा मन बदलने के लिए सहाय्य करते है। वो हमारे प्राणों में ऐसे बदलाव करते है कि, हम लोगों का मन बदल सकता है! अगर कोई मन बदलने का काम करता है, तो वो गलत मार्ग है। ये आदिमाता किसी के भी मन का नियंत्रण नहीं करना चाहतीं! मानव का क्षेत्र मन ही है। सब कुछ मन में ही चलता है। इसिलिए इसी क्षेत्र में बैठकर हमें बात करनी है। विचार अपने आप मन में आ जायेगा! जो आपको बदल सकता है। Mind Control (मनो-नियंत्रण) यह पवित्र मार्ग की बात नहीं है। No one is authorised to control or change mind! (मन को नियंत्रित करने का या बदलने का किसी को भी हक नहीं)
जो अच्छा भक्त है, उसके मन में जो दोष है, जो भी गलती है; उसे सुधारने के लिए पुरी सहायता दी जाती है! यह सब करते हुए भी इन्सान के मन पर control (नियंत्रण) नहीं किया जाता। क्यों की अगर मन पर control (नियंत्रण) किया, तो वो इन्सान robot (यांत्रिक मानव) बन जायेगा!
हमारे जीवन का विकास करना है, इस लिए हमें खुद पढाई करके खुद पास होना है। योगिन्द्रसिंह का अच्छा article (लेख) आया है, कृपासिंधू में! How are we related to them? (हम उनसे कैसे जुड सकते है?) How are they related to us? (वो हमसे कैसे जुड सकते है?) (स्वस्तिक्षेम संवाद)
हरि ॐ
(अनिरुध्दाज् युनिव्हर्सल बँक ऑफ रामनाम की संख्या बताई)
चक्रों के बीज मंत्र को देख रहे है।
मुलाधार चक्र
इस चक्र के चार दल है। उनके बीज मंत्र...
वं: - स्वाधिष्ठान चक्र का मुलबीज! इसके बारे में बाद में देखते है।
'शं' 'षं'
इनका उच्चारण जरुर कर सकते है! किसी भी क्रम से कर सकते है। सिर्फ चक्र को देखते हुए बोलें! और श्रध्दा, विश्वास के साथ बोलें! इसके सिर्फ कंपन से 'तिनों देह में उचित कंपन पैदा हो रहें है'
बाकी के बीजों को बोलने की जरुरत नहीं है।
इन बाकी 'शं' और 'सं'
'शं' शांती... 'शं' से 'शमन' होता है।
हमारे मन में शांती नहीं है! जो बेचैनी है, तो वह शांत नहीं होगा। बेचैनी शांत होगी! शमन याने दमन नहीं! संतुलित action (क्रिया), संतुलित विचार! 'शं' बीज ये पवित्रता से जुडा हुआ है। शिव नाम का अर्थ, 'सबसे पवित्र' हमेशा शांती प्रदान करता है; रुद्र स्वरुप होकर भी!
रुद्र स्वरुप, श्रध्दाहीनों के लिए है! और उसी का 'भद्र' स्वरुप, श्रध्दावानों के लिए है। उसकी हर मुर्ती, उसका हर चित्र, हर अवस्था simultaneously (समकालीन) रुद्र और भद्र भी है। यह भद्रता, याने 'मंगलकर्ता' जो अच्छा बनना चाहता है, जो अच्छा लेना चाहता है, अच्छा देना चाहता है; उसके लिए!
हम कैसे है, उसपर उसका स्वरुप निर्भर है। हमें उसके दोनो स्वरुप चाहिए! शिवजी हमें harm (नुकसान) करने वाले नहीं है। दोनो रुप हमारे लिए आवश्यक है। Equally (समांतर) उसका रुद्र स्वरुप हमारे स्थुल शरीर में, सारी बिमारियों का नाश करने के लिए है।
शेरनी, दुसरों के लिए भयानक होगी पर अपने बच्चों के लिए नहीं! यह ध्यान में रखें!!
अशुभ का नाश होना चाहिये, इसलिए दोनो रुप चाहिए!
रुद्र स्वरुप और भद्र स्वरुप; दोनो अलग अलग भी है और एक भी है!
हम अगर किसी की जिंदगी के साथ खिलवाड कर रहें हैं; तो ये चीज माँ को मंजुर नहीं! अगर गलती से हुआ, तो क्षमा मिलेगी।
लेकिन अगर जानबुझकर जहर घोल रहे है, तो रुद्र स्वरुप लेगा! जब तक वो दुसरे के जीवन में जहर घोलना बंद नहीं करता, तब तक क्षमा नहीं करता!
जो इन्सान दुसरों से तकलीफ मिलने के कारण आत्महत्या करता है; उसे अपना Revenge (बदला, सुड) लेने के लिए 'पिशाच्च योनि में जाने की permission (आज्ञा) है।
उसके पास बडा न्याय है। अपने पास जितना है, उतना ही खर्चा करो! दिखावे की बातों में नहीं आना! किसी को फोकट (मुफ्त) नहीं देना।
ऋण, वैर (बैर), हत्या में नहीं आना। माँ-बेटे; पिता-पती को दिया तो वो चलता है
ऋण से हत्या हो गयी! तो वैर (बैर) भी हो गया।
वो 'शिव' जब तक गुस्सा नहीं होता; तब तक बच जायेगा। किसी के जीवन के साथ खिलवाड मत करो। किसी का अच्छा कर सकते हो, तो करो! गलती हो गयी फिर भी!
ये 'शं' बीज, भद्र बीज! जो रुद्र का है, वो ही भद्र का है।
मेरी जिंदगी में कोई जहर ना घोलें, वैसे ही; मै भी किसी कि जिंदगी में जहर ना घोलूं!!
यह ध्यान करो!
अच्छे लोगों को तकलीफ कब आती है? जब उन्हे आधार देने के लिए कोई नहीं है, तभी
बुरे लोगों की जब सब ताकत, कम हो जाती है; तब सारे दुख उनपर फेंके जाते है! रोने के लिए कभी कंधा भी देने के लिए कोई नहीं होता! सिर्फ पैसे से कुछ नहीं होता!
ये 'शं' बीज, रुद्र और भद्र का है। हमें दोनो चाहिए! हम कोशिश करते रहें कि, हम किसी को ना फँसाये!!
हम भक्ती मार्ग पर है, तो ऐसा नहीं होना चाहिए; कि और कोई मुझे फँसाकर चला जायें। भक्ती से हमारी बुध्दी और तेज होनी चाहिए! I.Q. बढता है।
ये बीज हमारे मुलाधार चक्र में है। जहाँ से सबकुछ उत्पन्न होता है।
शिवजी, जो अंदर बैठा है, वो हमारा जहर पिने के लिए हमेशा तैय्यार होता है। हम किसी के जिंदगी में जहर घोलते है, मतलब वो जहर शिव जी को पिलाते है।
यह 'लं' में बाकी सब बीज आ जायेंगे।
किसी के मन में बहोत वासना उत्पन्न हुयी है!
Fr eg (उदाहरण के तौर पर) अगर किसी को भुख बहुत लगी है, तो ये 'शं' बीज 'लं' बीज; भुख कम करते है। किसी को भुख ही नहीं लगती! Normal (साधारण) भुख कि तरफ लायेंगे! जो विकार और वासनाएँ है, सारे षडरिपूं है, ये सारे षडरिपू मुलाधार चक्र से आते है। इस 'लं' बीज के अंदर 'शं' बीज आता है।
पुरे भाव के साथ, "ॐ लं" बोलोगे, तब सारे बाकी बीज जितने percentage (फिसदीं) में आवश्यक है! मुलाधार गणेश, अपने आप 'लं' बीज को प्रेरित करेंगे!
इसलिए भगवान पर faith (विश्वास) होना चाहिए!
हम लोग मुलाधार चक्र के 'शं' कार्य जो है... 'लं' बीज का, उसे जाने!! कि मैं किसी के जीवन में जहर नहीं घोलुँगा! और किसी को घोलने नहीं दुँगा। इससे जो फायदा मिले वो जरुर मिलेगा।
विश्वास बहुत महत्वपुर्ण काम करता है! सिर्फ भगवान के प्रती नहीं, हर रिश्ते में, हर काम में!
मेरे बच्चे किसी पे भरोसा नहीं रख सकते! लेकिन सब पर doubt (शक, संशय) करते फिरें, ऐसा भी ना हो!
बाहर 80% से ज्यादा खराब है। संस्था में 80% लोग अच्छे है। And I am proud of it (और मुझे इस पर गर्व है) खुद का भी सम्मान करना सिखों! मेरे बच्चों, 80% से उपर, ज्यादा लोग अच्छे है। मेरे सारे बच्चे अपने आप में भी improved (सुधारणा) है।
अगर हम माँ को दादी मानते है, तो ऐसी स्थिती में मेरी गलतियाँ सिर्फ 20% बाकी है। अभी श्री शब्द ध्यान योग करेंगे!
इस वसुंधरा पर सारे विघ्नों का नाश करनेवाला जो स्वामी है, वो गणेश है।
बाकी जो obstructions (अडचनें) आती है, उसके लिए 'मुलार्क गणेश' भी तैय्यार है।
इन्सान के लिए सबसे ज्यादा, 'मुलाधार चक्र' अहमियत रखता है।
मुलाधार चक्र हमारे लिए बहुत आवश्यक है।
आहार, विचार, सब कुछ इस चक्र के साथ जुडा हुआ है!
दुसरों के जीवन में जहर घोलना बंद करना है। गलती से हो गया हो तो सुधारने का प्रयास करें! और खुद के जीवन में भी घुलने नहीं देना। शिव जी, जो भी जहर आयेगा, वो पिते रहेंगे।
शब्दांकन
मिलिंदसिंह फणसे
हम सभी अंबज्ञ है।
No comments:
Post a Comment